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Importance of Education/शिक्षा का महत्त्व

धानुक समाज में शिक्षा का महत्त्वImportance of Education/शिक्षा का महत्त्व

बाबा साहब का यह संदेश शिक्षा का महत्व समझाता हैं, तलवारो से केवल मारकाट की जा सकती हैं और उसका नतीजा कभी समाज व देश के लिए अच्छा नहीं रहा जब भी तलवारे चली लोगों मे नफरत बढ़ी है, वहीं कलम ने इस देश मे अनेक बार इतिहास लिखा, कलम का मतलब शिक्षा है, शिक्षा अच्छी व बुरी हो सकती है लेकिन जिन लोगों ने अच्छी शिक्षा का महत्व को समझा और उस पर विचार व अमल किया उन महान पुरुषों ने इस देश व समाज को एक नई दिशा दी ओर वे सदा के लिए इतिहास मे स्थान बना गए।

 

क्योंकि शिक्षा ही आपको जीवन जीना सिखाती है अच्छे बुरे का फर्क बताती है। अगर आप सामान्य भाषा में शिक्षा की बात करे तो वह आपको शिक्षित कहलाने का हक़ देता है। उससे ऊपर अगर आप शिक्षा ग्रहण करते है और जिस स्तर की शिक्षा आप ग्रहण करते है वह आपके लिए आपके भविस्य को सुधारने में सहायक सिद्ध होती है। जैसे अगर आप मेट्रिक पास है तो चतुर्थ कर्मचारी के नौकरी के लिए योग्य होते है और जैसे जैसे ऊपर आप आगे बढ़ते है वैसे ही आपकी योग्यता बढ़ती जाती है। यह तो हुई जीवनयापन करने की क्षमता बढ़ाने वाला शिक्षा है।

 

जब आपका जीवनयापन सही तरीके से चलने लगता है तो उसके बाद जब आप अपने साथ साथ समाज के बारे में जानकारी हासिल करना शुरू करते है तो इस प्रकार की शिक्षा को आप सामाजिक ज्ञान की शिक्षा कह सकते है, जैसे हम सब अभी कोशिश कर रहे है। हम सब एक दूसरे के बारे में जानने की कोशिश में लगे है।

 

अगर आपकी शिक्षा सामाजिक शिक्षा के स्तर पर एक स्तर को पार कर जाती है तब आप दूसरे तरह की शिक्षा की तरफ मुड़ जाते है और वह शिक्षा के ज्ञान को आध्यत्म की शिक्षा कह सकते है।

 

लेकिन कुछ लोग कभी अपने आप को इन चरनो में नहीं बांधकर हमेशा शिक्षा ग्रहण करने में लगे रहते है चाहे जहाँ से मिले जैसे मिले ग्रहण करने की लालसा लेकर बढ़ते रहते है।

 

क्या इन सब से हट कर कुछ और भी हो सकता है शिक्षा का अर्थ या परिभाषा? अगर आप सही मायने में देखे तो शिक्षा दो प्रकार की हो सकती है:
1) अर्थोपार्जन
2) बौद्धिक विकास
बौद्धिक विकास की शिक्षा भी दो तरह की हो सकती है
1) आत्म विकास
2) सामाजिक उपयोग में लाने वाली शिक्षा
शिक्षा को आप किसी भी दायरे में नहीं बांध सकते है यह अविरल है स्वक्ष पानी की तरह।

 

अब सवाल उठता है की हमारे समाज को कौन सी शिक्षा की आवश्यकता है?
दोनों तरह की शिक्षा की आवश्यकता है समाज को जब तक हमारा बौद्धिक विकास नहीं होगा हम यह समझने के लिए तैयार नहीं हो पाएंगे की अच्छा क्या है बुरा क्या है। अर्थोपार्जन वाली शिक्षा इसीलिए जरुरी है क्योंकि समाज अपने आप को गरीबी की जीवन से ऊपर कर सकेगा।

 

इतना सारे स्कूल है क्या वह कम है? और धानुक स्कूल क्यों नहीं जाते या क्यों बीच में छोड़ देते है। सिर्फ स्कूल या छात्रवास बनाने से शिक्षा नहीं हो सकता है। शिक्षा का मतलब पढ़ना होता है ना की स्कूल खोलना। इस बात पर कोई नहीं सोच रहा है की धानुक स्कूल जाते है और पांचवी तक आते आते छोड़ देते है। क्या वहाँ पर स्कूल की बिल्डिंग से शिक्षा होगा? शायद नहीं पांचवी तक जाते जाते 50% ड्राप आउट है और आठवीं तक जाते जाते 20% रह जाते है स्कूल में। क्या ऐसे समाज बढ़ेगा। ऐसी शिक्षा का क्या महत्त्व है? कभी स्कूल शिक्षा नहीं देता है, पढ़ने वाला कही से पढ़ लेता है उसको किसी इंटरनेशनल स्कूल की जरुरत नहीं। आप शिक्षा को बढ़ावा दीजिये, लोगो में जागरूकता फैलाये। पढ़ना हर कोई चाहता है लेकिन हालात कभी यह करने नहीं देता है या कभी आपकी बुरी संगती ऐसा करने नहीं देती।

 

शिक्षा को बढ़ावा देने के उपायों पर सोचे ना की स्कूलों के बारे में। आज ज्यादा बच्चे स्कूल छोड़ रहे है हमारे समय के वनिस्पत क्यों किसी ने सोचा है जबकि आज बच्चों को खाना, पैसा, ड्रेस, किताब, कॉपी फिर भी हाल पहले से बदतर तो सोचना कहाँ होगा यह देखने वाली बात है। भवन कभी आपके पढ़ने में सहायक हो सकता है लेकिन उन्नति करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है।

 

आपको समझाना होगा लोगो को उसकी उपयोगिता बतानी होगी। उन्हें आपको अपना उदाहरण देकर समझाना होगा। जब तक आप उदाहरण सेट नहीं करेंगे लोग आकर्षित नहीं हो पाएंगे, लोगो को आकर्षित करना है तभी फायदा पहुंचेगा। कभी कोई चीज आसान नहीं होता है बनाना पड़ता है लगातार कोशिश करनी पड़ती है। मैं जब गाँव जाता हूँ तो अपने स्कूल जरूर जाता हूँ, इसीलिए की देखना चाहता हूँ की टीचर कैसे पढ़ाते है अगर उनको किसी चीज़ की परेशानी है तो मैं दूर कर सकूँ तो अवश्य करू। बच्चों से बात करता हूँ उन्हें अपनी बाते बताता हूँ। अपने टीचर्स की बाते बताता हूँ। कोई भी अपने गाँव जाए जरूर अपने स्कूल जाए वहाँ बच्चों को अपने अनुभव बताये उससे उनमे जोश पैदा होता है। जोश और जूनून बच्चे में जरुरी है क्योंकि आखिरकार उन्हें ही पढ़ना है। बच्चों को समझाना है आपके माँ बाप आज है कल नहीं, तो फिर ज़िन्दगी आपको खुद जीना होगा कैसे जिएंगे अगर आप सही से नहीं पढ़ेंगे तो। उन्हें अपने उदाहरण के साथ साथ कुछ और उदाहरण दे जो आपके साथ थे बचपन में लेकिन पढाई नहीं करने की वजह से कही ना कही पिछड़ गए। समयांतर समझाना होगा बच्चों को कल यहाँ क्या था आज क्या है। सभी धानुक लोगो के साथ बैठक रखे और बुजुर्गो को समझाए की क्या सही है और पढाई क्यों सही है। जहाँ तक आपका ज़मीर देता है उनको पढ़ाये। अपने बच्चों को पढ़ने दे खेलने दे, यही उनका जीवन है, आप अपनी ज़िन्दगी याद करे की आपको जब खेलने नहीं दिया जाता था तो आपको कैसा लगता था। तो बच्चों के जीवन में दो चीजे होनी चाहिए पढाई और खेल। पढाई बौद्धिक विकास के लिए और खेल शारीरिक विकास के लिए जरुरी है।
धन्यवाद।

छोटी मगर मोटी बाते

छोटी मगर मोटी बाते - अपने अपने शहर,गांव, मुहल्ले, पंचायत, टोला मे जितने जाति के लोग है

छोटी मगर मोटी बाते – अपने अपने शहर,गांव, मुहल्ले, पंचायत, टोला मे जितने जाति के लोग है

सारे घानूक भाईयो,बहनों से निवेदन है की वह जहाँ भी है अपने अपने शहर,गांव, मुहल्ले, पंचायत, टोला इत्यादि मे जितने भी अपने जाति के लोग है उन सभी से अपना सम्पर्क बनाये और कोशिश करे की महीने मे एक बार एक जगह इकठ्ठा हो और आपस मे एक दुसरे के बारे मे जानकारी ले एक दुसरे की मदद करे सुख दुख बाटे फिर देखिये हमारी जाति के लोगों मे ऐसी एकता उत्प्नन होगी की हम लोग किसी भी परिस्थितियों से निपटने के लिए सक्षम रहेंगे।

वो जहाँ भी है वहाँ का वोटर लिस्ट ले या नेट पर से अपने मतदान क्षेत्रों का वोटर लिस्ट डानलोड कर ले उन मे से जितने भी अपने जाति के लोग है उनका एक लिस्ट बना ले तथा कभी भी अपके घर मे कोई सा भी खुशी का माहौल हो उन लोगों को जरूर निमंत्रण दे इस से जितने भी अपने जाति के लोग है उन सभी को आपस मे एक दुसरे के बारे मे जानने का मौका मिलेगा और घानूक जाति की एकता बढेगी।

आप लोगों ने कभी सोचा है मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों, मे एकता का कारण, मुसलमान हर स्रुकवार के दिन एक ही लोगों से एक ही महजीद मे बार बार मिलते है,ईसाई हर रविवार के दिन एक ही चर्च मे एक ही शहर के लोगों से मिलते है,सिख भी हर रविवार को एक ही गुरुद्वारा मे एक ही शहर के लोगों से मिलते है आप ही सोचिये एक ही लोगों से बार बार मिलेंगे तो एक दुसरे मे नजदीकिया तो बढ़ेगी ही एकता भी बढ़ेगी। पर क्या हिन्दु एक ही मंदिर मे एक साथ मिलते है नहीं हम शनिवार को तो तुम रविवार वो सोमवार को बस यही कमजोरियों है हम लोगों की। इसीलिए कहते है सभी घानूक भाईयों से महीने मे एक बार जरूर इकटठा हो एक ही जगह।

हमारा एक छोटा सा सुझाव है उन सुखी सम्पन्न घानूक परिवारो से की अगर वो घर मे काम करनेवाला या करनेवाली,ड्राईवर रखे तो अपने ही जाति के उन लोगों को रखे जो पैसे के मामले मे बेबस व लाचार हो,दूघ,सब्जियां, राशन का समान ईत्यादी भी अपने ही जाति के लोगों से ले।

कोशिश करते रहे और समाज को ऊपर लाने के लिए व्यक्तिगत तौर पर जो कर सकते है अवश्य करे। यह शुरुआत होगी जब तक हम नहीं बदलेंगे तब तक समाज के बदलने की कल्पना नहीं कर सकते है।

धन्यवाद!
डॉ भवेश
नोट: कोई भी सुझाव सादर आमंत्रित है तथा यह मेरा अपना विचार है। इसमें कही से किसी की भावना को दुःख पहुँचाने का कोई इरादा नहीं है।

दहेजप्रथा एक अभिशाप

दहेजप्रथा एक अभिशाप - दहेज समाज के लिय काफी हद तक घातक साबित हुआ है

दहेजप्रथा एक अभिशाप – दहेज समाज के लिय काफी हद तक घातक साबित हुआ है

दहेज़ प्रथा उन्मूलन पर मैं अपने बिचार को रख रहा हूँ:
1.दहेज खास कर हमारे समाज और हमारे सामाज के समतुल्य लोगो के लिय काफी हद तक घातक साबित हुआ है और हो रहा है। जिसका मुख्य कारणों में से एक कारण दहेज़ प्रथा भी है, अगर हमारे सामाज के बेटियाँ 15-16 की उम्र को पार करती है तो गार्जियन को उसकी शिक्षा के बजाय उसकी शादी की चिन्ता सताने लगती है आखिर क्यों, क्योंकि गार्जियन चाहे तो पढ़ा तो सकता है, लेकिन हमारे धानुक सामाज में बहुत सारी बंदिशे है। हमें उस बंदिशे को खत्म करने की जरुरत है।

2. हमारे सामाज में आज भी सुन्दर चाम की पहचान दी जाती है नाकि सुन्दर काम को, थोड़ा सोचनीय है उन माँ बाप को कैसा लगेगा, जो अपनी बेटी को ग्रेजुएशन या पोस्ट ग्रेजुएशन करवाया है और जब शादी की बात चलती है तो सिर्फ उस लड़की का रिश्ता नहीं हो पाता है क्योकि की वो सवाली रंग की है। अब मजबूरन गार्जियन को मोटी दहेज़ की राशि देकर या तो फिर जैसे तैसे शादी करनी परती है।
हमारे समाज को सचेत रहना है की हमें सबसे पहले शिक्षा का महत्त्व दे और उस को अपनाये बिना डिमाण्ड करे की लड़की नाटी है या पतली है या काली है, क्योकि अगर हमारे परिवार में एक बहु या बेटी शिक्षित होती है तो पूरा परिवार एक प्रोपर वे में चलता है और आने वाली पीढ़ी भी सदृढ़ और मजबूत होती है।और इस से एक ऐसे पक्ष की शुरुआत भी होगी जिससे की ज्यादा से ज्यादा हमारी सामाज की बेटियां शिक्षित होगी।

3.दहेज़ मुक्त धानुक सामाज हमारी ये सोच होनी चाहिये और शायद ये काम जमीनी स्तर पे चल रहा है या नहीं, मालूम नही कौन चला रहा और यदि कह देने से हमारी धानुक सामाज दहेज़ मुक्त हो जाती है तो ये बकवास और फालतू की बाते है हमें वाकई धानुक दहेज़मुक्त सामाज बनाना हे तो हमें अपने आप से शुरू करना होगा और हमें ये भी मालूम नहीं की कितने सदस्य इसमे अपने आप को पूर्ण समझते है क्योकि शुरुआत तो अपने से ही होगी। अगर मेरे भाई की शादी होनी है तो बिना दहेज़ अगर मेरे बेटा की शादी करनी होगी तो दहेज़ मुक्त, लेकिन जब वो ही अपने ही लोगो की शादी में लोभ का धारण करता हो, दहेज़ लेता हो तो बात वही हुई ना,की मुँह में राम बगल में छुरी। अगर आप लोग सही में बिना किसी लोभ के अगर अपने सामाज को दहेज़ मुक्त बनाना चाहते हे तो खुल के सामने आये ,अपना नाम जरूर दे की वाकई आप भी ऐसा सोचते हे, क्योकि हमें विश्वासघात किसी के साथ नहीं करनी है जरूरी नहीं सभी इस से जूड़ ही जाय, लेकिन जो वाकई अपने मन में ये भाव रखते है एक बार जरूर बताइये।

4.सबसे बड़ी बात की हमें धानुक जाती सामाज की बरीयता दी जानी चाहिए ना की किसी अन्य सामाज को और ये भी हो सकता है की हमारे द्वारा शुरू की गई धानुक दहेज़ मुक्त प्रथमद्विवर्सिय योजना यानि की 2 बर्ष के अंत तक हमें पासिंग परिणाम देना है अगर बिहार में 500 जागरूक धानुक समाज है तो ,500*30/100=150 दहेज़ मुक्त शादिया होनी चाहिए।
और ये जरूरी नहीं की किसी जिला विशेष जैसे -कटिहार या सीवान या आरा या मोकामा हो।
शायद मेरा परिणाम दरभंगा या मधुबनी,नेपाल, या छपरा या किसी अन्य जगह भी क्रन्ति ला सकती है।
इसलिए हमारी ये भावना होनी चाहिये की हम धानुक है चाहे भारत के किसी भी कोने का क्यों न हो, लेकिन हमें अपने घर यानि बिहार से ये मिशन चालू करनी है।चाहे कोई भी जिला क्यों न हो बिहार के हमें धानुक समाज में कोई असमानता नहीं होनी चाहिए।

धन्यवाद!
अमरजीत महतो
नोट: कोई भी सुझाव सादर आमंत्रित है तथा यह मेरा अपना विचार है। इसमें कही से किसी की भावना को दुःख पहुँचाने का कोई इरादा नहीं है।

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