क्या बिहार में धानुक समाज का ST की मांग नाजायज़ है?
सवाल बहुत सारे है जैसे
ST में शामिल करने की वजह?
समाज में और कितना गिरेंगे?
ST में आने के बाद क्या आप कभी जनरल में आ पाएंगे?
अपने को और गिराने से अच्छा है अपने जानने वालो को मुख्यधारा में जोड़ा जाये?
मुझे कभी आरक्षण की जरुरत नहीं पड़ी?
विकलांग को अगर ज्यादा सुविधा मिलती है तो क्या हम अपने आप को अपंग बना ले?
SC/ST के हालात देखे आपको नहीं लगता है अपने आप को वही धकेल देना समाज के प्रति नाइंसाफी नहीं है?
क्या इससे समस्या का समाधान हो जायेगा?
क्या यह सिर्फ धानुक समाज की समस्या है?
हमसे अच्छा तो कुर्मी और यादव है जो पिछड़े में होते हुए भी हमारी जगह ले गए?
तो इन सारे सवालो का जवाब अलग अलग तो दिया जा सकता है लेकिन इन ज्वलंत सवालो का जवाब इस तरह से दिया जा सकता है।
कुछ तो लोग कहेंगे लोगो का काम है कहना। अगर ST में आने से कुछ का भला होता है तो क्यों नहीं, वैसे भी वह दिन दूर नहीं जब आरक्षण ही नहीं रहेगा। ये कोरी सच्चाई है जो लोग आज बिना आरक्षण के आगे बढ़ जाते है उनके लिए आरक्षण नहीं होता। बिना आरक्षण के बढ़ने वाले आज भी जनरल में जगह पाते है। कभी आपने सोचा है बिहार को छोड़कर सारे राज्यों में धानुक SC में क्यों आते है? क्या आपने सोचा हैआपको IIT में एडमिशन के लिए उदाहरण के तौर पर 500 नंबर लाने होते है लेकिन UP और बांकी राज्यों के धानुक को 450 में क्यों एडमिशन मिल जाता है। ये फर्क है जरा गौर फरमाइयेगा आप अपने किसी UP के दोस्त को बोल के देखिये की मैं धानुक हूँ वह आपको SC/ST ही समझेगा ना की OBC। इसका मतलब है की आप मानसिकता में पहले से ही गिरे हुए ही है, आपको और गिराने की क्या आवश्यकता है। आप कहते है आपको कभी आरक्षण की आवश्यकता नहीं पड़ी आपको धन्यवाद देना चाहिए अपने माता पिता को जिन्होंने आपको इस हद तक संवारा की आपको आरक्षण की जरुरत नहीं पड़ी। लेकिन क्या आपको एहसास है की यह सुविधा कितनो को मिल पाती है क्या हमे उसी सुविधा को निचले तबके तक नहीं ले जाना चाहिए? जैसा हम जानते है यह सिर्फ बिहार के धानुको में ये ग़लतफ़हमी है की हम ऊपर है क्योंकि बांकी राज्यों में तो आप SC/ST है। आप बराबरी की बात क्यों नहीं करते की बांकी जगह जब सरकार ने SC में रखा है तो यहाँ इस समाज को उस हक़ से वंचित क्यों रखा गया। क्या उसका फायदा निचे तबके के लोगो को नहीं मिलना चाहिए जो वाकई में इसके हक़दार है?
जिन्होंने इस दंश को झेला है उन्हें अंदाज़ा है की कास बिहारी धानुक भी SC में होता तो मैं भी आज एक अच्छे जगह होते क्योंकि वह जो एक नंबर से पीछे रह जाता है और उससे 5 नंबर कम लाने वाला दूसरे राज्य का धानुक का एडमिशन हो जाता है या उसको नौकरी मिल जाती है। ऐसे को तो मौका मिलेगा ताकि वह अपने आप को और अपने परिवार को देख पायेगा और अपने परिवार को वर्षो से झेलता आ रहा संताप से छुटकारा करा पायेगा। आप कहते है जो एक नंबर से पिछड़ जाता है तो उसका नंबर बढ़ाये, हम कहते है पैसा ही नहीं उसके पास तो आगे की पढाई कैसे करेगा और कितनी बार वह एडमिशन के लिए पेपर देगा और कितनी बार वह नौकरी के लिए फॉर्म भरेगा और कैसे भरेगा। OBC का फॉर्म फीस और जनरल का फॉर्म फीस में 50 रुपैये का अंतर होता है और जनरल और SC/ST के फॉर्म फीस का अंतर 300 का होता है। आप 5 बार UPSC बैठ सकते है और SC/ST अनगिनत बार भाग ले सकता है। आपको नहीं लगता बांकी राज्यों के वनिस्पत बिहार के धानुको के साथ पक्षपात है। आप कहते है आप सिर्फ अपने बारे में सोच रहा हूँ। क्या आप यह कह कर अपने आप को उसी सवाल के घेरे में नहीं ले रहे है?
आप बांकी समाज के बारे में सोच रहे है अच्छी बात है क्यों, क्योंकि आपके पास जीने लायक पैसा है बांकियों के बारे में सोचिये जो आज भी आज़ादी के 65 साल बाद भी निचले तबके में कही गुलामी की जंजीरो में कही जी रहा है। इस आंदोलन से कम से कम हम एक प्लेटफॉर्म पर तो आये वैसे ही जैसे सभी जातिओं का अपना संगठन है अपनी सोच है तो इस समाज का भी अपना संगठन क्यों ना हो।
आपको फर्क नहीं परता एक बार 1 नंबर से पीछे रह गए कोई नहीं एक बार और कोशिश कर लेंगे लेकिन उनका सोचिये जो किसी तरह एक बार फॉर्म भरते है, और दूसरी बार वह भर नहीं सकता क्योंकि उसके पास पैसे नहीं है। ये गर्त में जाने की कोइ बात नहीं है आप अपने समाज को बांकी राज्यों के तुलना करके देखिये की बिहारी धानुक क्यों पीछे रह गया। सरकार अगर किसी जाती को एक केटेगरी में रखा है तो हर एक राज्य के लोगों को रखना चाहिए ना यह पक्षपात क्यों। लेकिन हर कोई अपनी जाती को देख रहा है चाहे वह आज की राजनितिक पार्टियां ही क्यों ना हो, क्या ये गिनती भूल जाते है चुनाव में।
आप जीवन भर जाती प्रमाण पत्र के लिए एड़ियां रगड़ते रहिये, कोई नहीं पूछेगा। मर जाइये, राजनितिक पार्टियां फ़ौरन आपकी जाती सत्यापित कर देगी। और हम आपसे कहते है हम जिस भी जाती में आते है उन जातियों को क्यों आज भी एक मामूली प्रमाण पत्र के लिए भी राजनितिक रसूख़ की जरुरत पड़ती है।
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