गुलशन की जरूरत पड़ी, तो लहू हमनें भी दिया।
जब चमन में बहार आयी तो कहते है तुम्हारा काम नहीं।
इतिहास हमसे ही लिखाया और,
जब पन्ना पलटा तो हमारा नाम नहीं।।
शहीद रामफल मंडल
शहीदों के श्रृद्धांजलि यात्रा कार्यक्रम के तहत बिहार सरकार की परिवहन मंत्री माननीया श्रीमती शीला मंडल जी दिनांक 29 नवंबर 2020 को कर्पूरी ठाकुर संग्रहालय, पटना से यात्रा प्रारंभ कर जननायक के जन्मभूमि समस्तीपुर के कर्पूरी ग्राम, पितौझिया में जननायक कर्पूरी ठाकुर के प्रतिमा पर श्रद्धांजलि अर्पित की। उसके बाद आजादी की लड़ाई में फांसी को गले लगाने वाले मुजफ्फरपुर के अमर शहीद जुब्बा साहनी एवं 1942 के स्वंतन्त्रता आंदोलन में तिलक मैदान मुजफ्फरपुर में तिरंगा फहराने के क्रम में पुलिस की गोली से शहीद भगवान लाल चन्द्रवंशी के प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की।
इसके बाद बिहार के सीतामढ़ी के बाजपट्टी में आजादी की लड़ाई में 19वर्ष की उम्र में फांसी को गले लगाने वाले अखंड बिहार का पहले अमर शहीद रामफल मंडल जी के आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की। शहीद रामफल मंडल टावर पर ही सीतामढ़ी जिले में 1942 में अंग्रेजी पुलिस की गोली से बाजपट्टी, बनगांव के शहीद जानकी सिंह एवं प्रदीप सिंह, रीगा के अमर शहीद मथुरा मंडल, ननू मियां एवं सुन्दर महरा तथा सुरसंड के अमर शहीद सुन्दर खतवे एवं राम-लखन गुप्ता, चोरौत के शहीद भदई कबारी और बेलसंड के तरियानी, छपरा के अमर शहीद भूपन सिंह, नौजाद सिंह, सुखदेव सिंह, वंशी ततमा, सुखन लोहार, गुगुल धोबी, परसत तेली, छठू कानू, बलदेव सुढी, बिकन कुर्मी, बंगाली नूनिया, बुधन कहार, बुझावन चमार सहित पुलकित कामत आदि लोगों ने अपनी जान देकर आजादी के आंदोलन में अपना सर्वश्व तक न्यौछावर कर दिया। उन्होंने इसी यात्रा कार्यक्रम को जारी रखते हुए पुपरी शहीद टावर पर पुपरी के अमर शहीद महावीर गोप, गंभीरा राय, रामबुझावन ठाकुर, सहदेव साह आदि को श्रृद्धांजलि अर्पित की।
इसके बाद शहीद रामफल मंडल जी के जन्म भूमि बाजपट्टी के मधुरापुर मंडल टोल में शहीद रामफल मंडल के परिजन अमीरी लाल मंडल के घर के आंगन में पहुंच कर मिट्टी को अपने ललाट पर लगाते हुए अमीरी लाल मंडल के खपरैल और फूस का जीर्ण शीर्ण मकान, गरीबी, बेवसी और लाचारी देखकर भाव विभोर हो गई। एक भावनात्मक व्यक्ति के लिए यह एक स्वाभाविक बात होती है जिसकी वजह से उनकी आंख में आंसू आ गए क्योंकि वे भी उन्ही लोगों में से एक है और आजादी के महत्व को भली भांति समझती भी है साथ में एक कवियित्री भी है। जिन उद्देश्यों के लिए शहीद रामफल मंडल 23 अगस्त 1943 ई को भागलपुर सेन्ट्रल जेल में फांसी को गले लगा लिए और आज आजादी के इतने वर्षों बाद भी उनकेे परिजन इस स्थिति में देखकर भावनात्मक रूप से बह जाना एक संवेदनशील व्यक्ति की निशानी है। शहीद रामफल मंडल के आंगन से मंत्री शीला मंडल जी ने जो बयान दिया, उसपर कुछ लोगों में आक्रोश है। मंत्री शीला मंडल के कहने का तात्पर्य यह था कि जिस तरह 1857 ई. के महान स्वतंत्रता सेनानी शाहाबाद के राजा बाबू वीर कुंवर सिंह राजपूत जाति से थे। जो राजा भी थे। गंगा नदी पार करते समय अंग्रेजी पुलिस की गोली उनके बांह में लगी और जहर फैलने से रोकने के लिए जख्मी बांह को स्वयं ही काट डाला।
उदाहरण स्वरुप उन्होंने कहा कि जिस तरह वीर कुंवर सिंह का बांह कट गया तो इतिहास के पन्नों में बच्चा बच्चा को पढ़ाया जाता है, उसी तरह आजादी की लड़ाई में फांसी को गले लगाने वाले अमर शहीद रामफल मंडल, जुब्बा साहनी सहित जो जाति धर्म के कमज़ोर, वंचित एवं गरीब परिवारों से आनेवाले शहीदों को इतिहास में जगह नहीं मिली। इतिहासकारों द्वारा कमजोर वर्ग के शहीदों के साथ नाइंसाफी तो किया इसमें कोई संदेह नही। अगर शहीद रामफल मंडल जी भी वीर कुंवर सिंह की तरह उच्च वर्ग तथा बड़े परिवार से होते तो शायद इतिहास में उनको भी जगह मिलती। पाठ्य पुस्तकों में जीवनी शामिल होती। नीतीश कुमार जी के शासनकाल में ही 2006 ई में शहीद रामफल मंडल की प्रतिमा बाजपट्टी में लगायी गई, जिसका अनावरण नीतीश कुमार जी ने किया। शहीद रामफल मंडल पर डाक टिकट जारी करने का प्रक्रिया चल रही है जिसके लिए आधिकारिक तौर पर समाज की तरफ से माँग भी रखी गयी है।
सोशल मीडिया पर मंत्री शीला मंडल के बयान पर खास वर्ग के लोग आक्रोशित हैं। मंत्री शीला मंडल ने विभिन्न चैनलों पर दिये गये बयान पर कहा कि उनकी मंशा किसी की भावना को ठेस पहुंचाने की नहीं थी। अगर मेरे बयान से किसी की भावना आहत हुई हैं, तो खेद व्यक्त करती हूँ। इसके बावजूद कुछ लोग इसे अपने स्वाभिमान से जोड़ कर देखने की कोशिश कर रहे है जो अगर इसे सामाजिक परिप्रेक्ष्य में देखे तो सही नही है। स्वाभिमान गरीबों, वंचितों एवं कमज़ोर वर्गों में भी होता है।
जिस दिन शहीद रामफल मंडल, जुब्बा साहनी, वंशी ततमा, गुगुल धोबी, भदई कबारी, सुखन लोहार, परसत तेली, छठू कानू, बलदेव सुढी, सुन्दर खतवे, राम-लखन गुप्ता, सुन्दर महरा, भूपन सिंह, नौजाद सिंह, बिकन कुर्मी, बंगाली नूनिया, बुधन कहार, बुझावन चमार, रामानंदन पासवान सहित अन्य शहीदों के बिहार में पहली बार श्रृद्धांजलि यात्रा के माध्यम से सम्मान देने वाली परिवहन मंत्री माननीया श्रीमती शीला मंडल जी ने किसी भी वर्ग की भावनाओं को कोई ठेस नही पहुँचाया है उन्होंने सिर्फ उदाहरण के तौर पर इसका उल्लेख किया था। और उनके समर्थन में पूरा वंचित तबका उनके साथ खड़ा है चाहे वो बिहार में रहते हो या बिहार के बाहर रहने वाले बिहारी हो।
वैसे भी 1857 ई के विद्रोह को विभिन्न इतिहासकारों ने इसे अलग अलग तरीके से बताने की कोशिश की किसी ने इसे सिपाही विद्रोह कहा तो किसी ने इसे राजा और जमींदारों का विद्रोह, तो किसी ने इसे धार्मिक विद्रोह तो किसी ने सांस्कृतिक विद्रोह कहा है। तो जब 1857 का विद्रोह के लिए हमारे देश के इतिहासकार एकमत नही है तो फिर संभव है ऐसे ही कई और बातों की परतें जब इतिहास के पन्नो से खंगाला जाएगा तो उसमें से अमर शहीद रामफल मंडल जैसे लोग निकलेंगे जिनके बारे में बिहार को जानकारी नही। और इसमें कोई दो राय नही जब हम खुद खंगालने लगे तो 1942 के आंदोलन से ही कई ऐसे पन्ने निकले जो अभी तक दफ़न रहे है किसी ना किसी वजह से। बात सिर्फ इतनी है कि अगर शहीद हुए तो सभी को समान शहीद का दर्जा मिले।
कहा जाता है अगर 1857 का विद्रोह आम भारतीय के लिए आंदोलन होता तो सफलता मिल गयी होती। लेकिन जो लोग आज वीर कुंवर सिंह जी का नाम लेने पर आक्रोशित हो रहे है उन्ही में से सीतामढ़ी के अमर शहीद जानकी सिंह, प्रदीप सिंह, भुपन सिंह, सुखदेव सिंह, नौजाद सिंह जैसे कमजोर गरीब शहीदों को उनके अपने लोग लोग क्यों भूल गए, क्या वे शहीद नही हुए थे। क्योंकि आमजन को यह बातें पता ही नही है अगर पता नही है तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है इस बात को समझने की आवश्यकता है। माननीया परिवहन मंत्री श्रीमती शीला मंडल जी ने उन गुमनाम शहीदो को भी श्रृद्धांजलि अर्पित की है। जिनके परिवारजन अभी तक इस बात को तरस रहे थे कि उनके शहीद को तो कोई सरकारी व्यक्ति याद करें उन्हें भी वही सम्मान मिले जो बाँकी शहीदों को दिया जाता है। और यह यात्रा कार्यक्रम इसी कड़ी में एक मील का पत्थर साबित होने जा रहा है क्योंकि वे उन सभी को याद करने की कोशिश में जिनको इतिहास के पन्नो में या तो गुम कर दिया गया या तो भुला दिया गया।
दरअसल श्रीमती शीला मंडल जी की भावना को समझने की जरूरत है वे रामफल मंडल की वंशज हैं। पहली बार विधायक और मंत्री बनने के बाद अपने घर जाने से पहले शहीद रामफल मंडल एवं अन्य महापुरुषों के जन्मभूमि की मिट्टी को माथे पर तिलक लगाते हुए जानें का कार्यक्रम था। जिसके तहत् शहीद रामफल मंडल जी के परिजन के घर की दुर्दशा को देखकर दुखी हो गयी। इसी क्रम में उन्होंने वीर कुंवर सिंह का उदाहरण देते हुए शहीद रामफल मंडल को भी उसी तरह का सम्मान नहीं मिलने पर बयान दिया। उनका बयान एक संदर्भित था जिससे लोग इस बात को आसानी से समझ सके।
शहीदों की कोई जाति नहीं होती है। शहीद देश का होता है। लेकिन कलम के धनी इतिहासकारों ने इतिहास के साथ छल ही नही किया है वरन उसे छुपाने का एक जघन्य अपराध किया है। इससे कमजोर वर्गों में गुस्सा आना स्वाभाविक है और मंत्री महोदया का बयान इसी कड़ी में दिया गया एक बयान था।
ज़रुरत है आजादी के आंदोलन के सभी अमर शहीदों की जीवनी एवं उसके बारे में नयी पीढ़ी को बताया जाए जिससे किसी भी जाति समुदाय में इस तरह का विद्वेष पैदा ना हो पाए।
अंत में संविधान निर्माता डॉ अम्बेडकर साहेब एक पंक्ति याद दिलाना चाहूँगा कि “जो देश एवं समाज अपने इतिहास को भूल जाता है, इतिहास उसे भूला देता है।“
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शहीद हुए सभी अमर शहीदों कोटि कोटि नमन और विनम्र श्रद्धांजलि।
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