आर्थिक,सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, धार्मिक,राष्ट्रीय तथा समाज में प्रचलित परम्परागत मूल्यों के परस्पर संवाद से जो आया बोध जागृत होता है उसकी समाज और विश्लेषणात्मक शक्ति का नाम सामाजिक चेतना हो सकता है। सामाजिक चेतना केवा समझ ही नहीं देती बल्कि वह सामाजिक उदेश्यों को पूरा करने के लिए आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देती है। हमारा कुंठा से ग्रस्त जीवन में आशा रौशनी व् विश्वास जागृत करके उन्हें एक सूत्र में पिरोना ही सामाजिक चेतना का कार्य है।
यदि व्यक्ति अपने इन्द्रियों पर नियंत्रण कर ले तो सामाजिक विसंगतियां स्वत: ही दूर हो जाएंगी। वास्तव में विसंगतियों की जननी मनुष्य की कामनाएं होती है। ऐसे में शिक्षा के प्रकाश से ऐसी कामनाओं पर विराम लगता है और व्यक्ति समाज व देश हित में सोचता है, इसलिए व्यक्ति के निर्माण में शिक्षा की अहम भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता। हर युग में समाज व राष्ट्रनिर्माण में शिक्षा की महत्ता रही है। प्राचीन काल में विद्वानों को उच्च स्थान प्राप्त था और सभी उन्हें सम्मान देते थे। वर्तमान व्यवस्था भी उससे इतर नहीं है। शिक्षित व योग्य व्यक्ति को समाज में उच्च स्थान प्राप्त है।
समाज को सही पथ पर आगे बढ़ाने के लिए दो बातों का होना अत्यंत जरूरी है- एक महान आदर्श और एक महान व्यक्तित्व। सामाजिक चेतना का बीज एक साथ चलने और चिंतन करने में है। जहां ऐसे मंत्र नहीं हैं, वहां कोई आदर्श नहीं है और जहां कोई आदर्श नहीं है, वहां जीवन लक्ष्यविहीन है। मनुष्य की अभिव्यक्तियां और चलने की राह भी अनेक है। कुल मिलाकर, मनुष्य की विभिन्न अभिव्यक्तियां ही संस्कृति है। एक समूह के व्यक्ति के साथ दूसरे समूह के व्यक्ति की अभिव्यक्ति के तरीके में भिन्नता हो सकती है। जैसे एक समूह के व्यक्ति अपने हाथों से खाते हैं, तो दूसरे समूह के व्यक्ति चम्मच से खाते हैं, किंतु सबकी संस्कृति एक ही है। इसलिए मानव समाज की संस्कृति एक और अविभाज्य है। बौद्धिक विकास के साथ मनुष्य की अभिव्यक्तियों में वृद्धि की संभावना है।
समाज के आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक व राजनीतिक कलेवर होते हैं। इस कारण उनमें अनेक विसंगतियां भी दृष्टिगत होती हैं। विसंगतिया पैदा करने वाले तत्व सदैव यही प्रयास करते हैं कि उन्हें कायम रखा जाए, लेकिन शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जो सामाजिक विसंगतियों व समस्याओं को दूर कर सकता है। साथ ही मनुष्य में सामाजिक चेतना जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है। शिक्षित समाज में ही कला, संस्कृति व साहित्य के उत्थान के अवसर तलाशे जा सकते हैं। शिक्षित समाज से ही प्रशासनिक, राजनैतिक व आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
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