A leading caste in Bihar & Jharkhand

Archive for the Moral Values Category

Duty towards community – समुदाय के प्रति कर्तव्य

व्यक्ति का समाज के प्रति वही दायित्व है जो अंगों का सम्पूर्ण शरीर के प्रति। यदि शरीर के विविध अंग किसी प्रकार स्वार्थी अथवा आत्मास्तित्व तक ही सीमित हो जायें तो निश्चय ही सारे शरीर के लिए एक खतरा पैदा हो जाए। सबसे पहले भोजन मुँह में आता है। यदि मुँह स्वार्थी बन कर उस भोजन को अपने तक ही सीमित रख कर उसका स्वाद लेता रहे और जब इच्छा हो उसे थूक कर फेंक दे, तो उसके इस स्वार्थ का परिणाम बड़ा भयंकर होगा। जब मुँह का चबाया हुआ भोजन पेट को न जाएगा तो कहाँ से उसका रस बनेगा और कहाँ से रक्त माँस, मज्जा आदि? इस क्रिया के बन्द हो जाने पर शरीर के दूसरे अंगों और अवयवों को तत्व मिलना बन्द हो जाएगा। वे क्षीण और निर्बल होने लगेंगे और धीरे-धीरे पूरी तरह अस्वस्थ होकर सदा-सर्वदा के लिए निर्जीव हो जायेंगे। पूरा शरीर टूट जाएगा और शीघ्र ही जीवन हीन होकर मिट्टी में मिल जाएगा। यह सब अनर्थ, एक मुँह के स्वार्थ-परायण हो जाने से घटित होगा।

व्यक्ति की स्वार्थपरता सामाजिक जीवन के लिए विष के समान घातक है। जो व्यक्ति सामूहिक दृष्टि से न सोच कर केवल अपने स्वार्थ, अपने व्यक्तिवाद में लगे रहते हैं, वे सम्पूर्ण समाज को एक प्रकार से विष देने का पाप करते हैं। ऐसे व्यक्तियों की आत्मा कभी भी शांत और सुखी नहीं रह सकती। शीघ्र ही उसका लोक तो बिगड़ ही जाता है, परलोक बिगड़ने की भूमिका भी तैयार हो जाती है। समाज में व्यक्तिगत भाव का कोई स्थान नहीं है। जिसने शक्ति, समृद्धि, सम्पन्नता अथवा पद प्रतिष्ठा के क्षेत्र में उन्नति तो कर ली है, किन्तु अपनी इन सारी उपलब्धियों को रखता अपने तक ही सीमित है, किसी भी रूप में समाज को उसका लाभ नहीं पहुँचता तो उसकी सारी उपलब्धियां, समृद्धियाँ और सफलताएँ हेय हैं। ऐसे स्वार्थी व्यक्ति का कोई विवेकशील व्यक्ति तो आदर की दृष्टि से देखेगा नहीं, मूढ़ और मतिमन्द लोग भले ही उसको आदर, सम्मान देते रहें।

यदि देश का युवा जागरूक बनेगा तो देश को आगे बढने से कोई रोक नहीं सकता। समुदाय के विकास में भी युवाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। शासन द्वारा जनकल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से जो विकास का अध्याय लिखने का प्रयास हैं, वह तभी सम्भव हैं जब युवा ऐसे हितग्राहियों तक इन योजनाओं को लेकर जाए जिन्हें इनकी जानकारी नहीं मिल पाती है। युवाओं में नेतृत्व के गुण होना आवश्यक है और वे प्रशिक्षण के माध्यम से वे नेतृत्व के गुण सिखेंगे जिसका लाभ समाज को और देश को प्राप्त होगा। जीवन का एक लक्ष्य होना चाहिए और उस लक्ष्य के प्रति समर्पण भाव से जुटना चाहिए। हम तभी सामाजिक नेता बन सकते हैं जब हमारे मन में समाज के प्रति कुछ करने का भाव हो। युवा देश की ताकत है तथा इस ताकत का यदि सदुपयोग किया जाये तो देश की दिशा और दशा बदल सकती है। देश के विकास में युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित हो तभी देश आगे बढ सकता है।

यह आम धारणा है कि आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को न्याय नहीं मिलता तथा पैसे वाले ही न्याय प्राप्त कर पाते हैं यह धारणा सही नहीं है। देश में राष्ट्रीय स्तर से लेकर तहसील स्तर तक विधिक सेवा प्राधिकरण बना हुआ है जिसके माध्यम से गरीबों को भी नि:शुल्क विधिक सेवा मिल सकती है तथा वे भी न्याय प्राप्त कर सकते हैं। यह जानकारी युवाओं को गांव तक पहुंचाना चाहिए ताकि ऐसे लोग भी इस सेवा का लाभ प्राप्त कर सकें जिन्हें इसकी जानकारी नहीं है। व्यवसाय बारे में हमारा नजरिया सकारात्मक होना चाहिए तो हम हर क्षेत्र में आगे बढ सकते हैं व्यवसाय में भी नजरिया बहुत महत्वपूर्ण हैं। असफलताऐं हमें बहुत कुछ सिखाती और सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है। सोशल मीडिया ने देश में क्रांति ला दी है यदि इसका सही उपयोग किया जाये तो इसका काफी लाभ भी हो सकता हैं वहीं इसका दुरूपयोग करने का दुष्परिणाम भी भुगतना पडता है। युवाओं को इसके सम्बंध में जानकारी होना आवश्यक है ताकि वे इस नई तकनीक से वाकिफ होकर इसका लाभ प्राप्त कर सकें।

Like to share it

Women need to be financially independent

हमारे समाज की महिलाओ को आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने की आवश्यकता है

वित्तीय स्वतंत्रता एक जीविका को सकल करने की क्षमता है जो आपको बिना किसी प्रतिबंध के अपने खर्चों को बनाए रखने की अनुमति देती है। पुरुष हो या महिला, अपनी जरूरतों को अपनी शर्तों पर पूरा करना बहुत जरूरी है। हालांकि, भारतीय महिलाओं ने वित्तीय स्वतंत्रता से अधिक घरेलू जरूरतों को प्राथमिकता दी, जो संघर्ष के समय उन्हें पीड़ाओं और विध्वंस के गहरे निशान के साथ छोड़ देती है। भारत में कई अभियान हैं जो केवल महिलाओं के लिए उन्हें मार्गदर्शन देने के लिए निर्धारित किए गए हैं ताकि उन्हें आर्थिक रूप से उदार होने के तथ्य को समझा जा सके। अभियान केवल आपके पथ का लालटेन हो सकता है, लेकिन वास्तविक कार्य आपके पैरों को करना है जो इसका मार्ग खुद बखुद खोज लेगा।

एक महिला के लिए वित्तीय स्वतंत्रता न केवल शिष्टता और आत्म-आश्वासन का स्रोत है, बल्कि यह उसके और उसके परिवार के लिए निर्णय लेने के महत्वपूर्ण मामलों में योगदान करने के लिए उसकी विश्वसनीयता को अनुदान देती है।

मान लीजिए कि एक महिला या लड़की आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं है, तो वास्तव में उसे क्या करना चाहिए यहाँ हम उसके ऊपर चर्चा करेंगे:

  • सबसे बुनियादी बात तब होती है जब वह आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं होती है; उसे एक कठपुतली के रूप में ढाला गया है जिसके तार उसके हाथों में हैं जो उसके वित्तीय मुद्दों को हल कर रहा है।
  • ऐसी महिलाएं जो ऐसे समाज से आती हैं गाली गलौज आम बात है वहां पर वे प्रायः शारीरिक यातनाओं से गुजरते है। अगर उन्होंने कमाया होता तो ऐसा कभी नहीं होता।
  • उसे हर स्थिति में हर बार समायोजित करना पड़ता है क्योंकि वह कमाई नहीं कर रही है। वह अपने नियम और शर्तों पर अपना जीवन नहीं जी सकती।

उपर्युक्त बिंदु इस समाज को यह समझने के लिए काफी संतोषजनक हैं कि हमारी महिलाओं को “सिर्फ एक गृहिणी” से “एक आर्थिक रूप से स्वतंत्र महिला” के रूप में उनका पोषण और नवीकरण करना कितना आवश्यक है।

हमारा समाज हमेशा सोचता है कि एक महिला को सिर्फ घर में बैठकर खाना बनाना है और अपने परिवार और एक आदमी के लिए खाना बनाना और कमाने का एकमात्र अधिकार है। हां, हमने अपने समाज की ऐसी मानसिकता की रूढ़िवादिता को कुछ हद तक अवश्य तोड़ा है, लेकिन फिर भी हम अभी भी कई रूढ़िवादी लोगों से आच्छादित हैं।

इस रूढ़िवादी मानसिकता को मिटाने के लिए एक कदम शुरू किया गया है और हम यहां एक कदम आगे बढ़ने के लिए हैं और आप सभी जानते हैं कि वास्तव में महिलाओं के लिए आर्थिक रूप से उदार होना क्यों आवश्यक है?

आज की समकालीन दुनिया में महिलाएं अधिक आत्मविश्वास से भरी हुई हैं। वे पारिवारिक कृषि कर्तव्यों का समर्थन कर रहे हैं और पुरुषों के बराबर हैं। वे उत्पादक रूप से कमा रहे हैं और एक दिन पूरी तरह से स्वतंत्र महिला बनने के लिए दृढ़ हैं।

कुछ बिंदुओं से आप सभी को यह पता चल जायेगा की क्यों हमें आर्थिक रूप से उदार होने की आवश्यकता है।

नौकरी हो जय जीवन,  इस दुनिया में कुछ भी निश्चित नहीं है। एक परिवार में आम तौर पर एक ही रोटी कमाने वाले यानि पति या पिता का कर्ज़ होता है, लेकिन अगर इनमें से किसी के पास कभी भी पैसा न हो, तो नौकरी नहीं? हम आम तौर पर ऐसे विषयों पर चर्चा नहीं करते हैं क्योंकि हम उन्हें अतार्किक या अनिश्चित पाते हैं, लेकिन हां, हम ऐसी स्थितियों का सामना भी कर सकते हैं। एक पति अगर किसी खतरनाक स्थिति में हो तो कुछ पारिवारिक समस्याएं हो सकती हैं कि एक महिला ऐसे में कैसे जीवित रहने वाली है? ये प्रश्न आपके जीवन स्तर के विपरीत अप्रासंगिक हो सकते हैं, लेकिन फिर भी, यह समाज ऐसी महिलाओं से भरा हुआ है, जिन्हें घरेलू हिंसा की स्थितियों और आघात का सामना करना पड़ता है। जीवन में आपात स्थिति की ऐसी स्थितियाँ एक सबक देती हैं कि हममें से हर कोई लैंगिक रूप से स्थिर और स्वतंत्र होना चाहिए ताकि जीवन के बुरे समय में कम से कम वे अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा कर सकें। कभी-कभी हम मुद्रास्फीति की स्थितियों का सामना करते हैं जो प्रत्येक परिवार और प्रत्येक कार्यालय में चर्चा का सबसे आम एजेंडा है, अगर हमारे पास परिवार में एक अतिरिक्त सदस्य की कमाई होगी तो यह देश की जीडीपी को नुकसान या कम नहीं करेगा।

आमतौर पर हमेशा इस रूप में क्यों माना जाता है कि एक महिला परिवारों को चलाने में असमर्थ है अगर वे बाहर जाते हैं और कमाते हैं? खैर, सरोजिनी नायडू, ममता बनर्जी, डॉ। टेसी थॉमस, भारत की मिसाइल महिला आदि कुछ ऐसी देवियाँ हैं, जिन्होंने उन सभी के लिए एक मिसाल कायम की है, जो कहती हैं कि महिलाएँ मल्टी-टास्किंग नहीं हो सकतीं। जब एक महिला एक परिवार में कमाती है तो घर अधिक सकारात्मक और सक्रिय हो जाता है। वह अधिक आत्मविश्वास और तरोताजा महसूस करने लगी क्योंकि उसे अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसे के लिए अपने पति या पिता से मांगनी नहीं पड़ती। इन सभी पहलुओं के अलावा, एक कमाऊ महिला भी आजीविका के दैनिक खर्चों में योगदान करेगी। घर में आपात स्थिति के समय जब घर का एक रोटी कमाने वाला घर के खर्च में योगदान नहीं दे पाता है तो अन्य अपने जीवन के सुचारू प्रवाह को जारी रखने में मदद कर सकते हैं।

भारत में 70% महिलाएँ घरेलू हिंसा से पीड़ित हैं; अगर समाज उन्हें काम करने की अनुमति देगा और यह निश्चित रूप से कम से कम 20% तक गिर जाएगा।

इसका अंत सिर्फ इतना नहीं है कि एक कमाऊ महिला एक सामान्य महिला की तुलना में एक अलग स्तर का विश्वास रखती है। कहा जाता है कि अगर आप आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं तो आपका मनोबल अपने आप बढ़ जाता है!

जब वह कमाती है तो वह सुरक्षित और मजबूत महसूस करने लगती है, उसने अपने लक्ष्य और जीवन स्तर को निर्धारित किया है। कभी-कभी वह दूसरों को आत्मविश्वासी होने के लिए प्रेरित करती है और उन्हें अपने लिए बढ़ने और कमाने के लिए प्रेरित करती है। साथ ही, एक देश को एक महिला की कमाई से लाभ होता है क्योंकि एक अतिरिक्त भाग देश की जीडीपी में जोड़ा जाता है। कर और राजस्व का भुगतान उसके द्वारा किया जाता है जो अन्यथा देश को लाभान्वित करने वाला है।

हम हर महिला को काम करने दे सकते हैं, बस हमें एक महिला और उसके मनोबल के प्रति अपनी मानसिकता को बदलना होगा।

यदि आप उपरोक्त बिंदुओं से गुजरते हैं, तो आप देखते हैं, यह सभी महिलाओं के लिए आवश्यक है; आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के लिए विवाहित, एकल, अलग, विधवा या तलाकशुदा। एक महिला एक बिजनेस टाइकून और एक गृहिणी दोनों हो सकती है; वह दोनों कार्यों का प्रबंधन करने के लिए पर्याप्त सक्रिय है।

Like to share it

Overall Development – समावेशी विकास

अनावश्यक, अनुपयोगी, अवाँछनीय, आवश्यकताओं को लोग बढ़ाते जा रहे हैं। इन बढ़ी हुई आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अधिक धन की आवश्यकता पड़ती है। अधिक धन कमाने के लिए अधिक परिश्रम, अधिक चिन्ता और अधिक अनीति बरतनी पड़ती है। ईमानदारी और उचित मार्ग से मनुष्य एक सीमित मर्यादा में पैसा कमा सकता है। उससे इतना ही हो सकता है कि जीवन का साधारण क्रम यथावत् चल सके। अन्न, वस्त्र, घर, शिक्षा, आतिथ्य आदि की आवश्यकताओं भर के लिए आसानी से कमाया जा सकता है, पर इन बढ़ी हुई अनन्त आवश्यकताओं की पूर्ति कैसे हो?

हमने अनावश्यक जरूरतों को अन्धाधुन्ध बढ़ा लिया है। फैशन के नाम पर अनेकों विलासिता की चीजें खरीदी जाती हैं इंग्लैण्ड के ठंडे प्रदेश में जिन चीजों की जरूरत पड़ती थी वे फैशन के नाम पर हमारे गरम देश में भी व्यवहृत होती हैं। सादा के स्थान पर भड़कदार, कम मूल्य वाली के स्थान पर अधिक मूल्य वाली खरीदना आज एक बड़प्पन का चिह्न समझा जाता है। शारीरिक श्रम करके पैसे बचा लेना असभ्यता का चिह्न समझा जाता है। इस प्रकार आकर्षक वस्तुओं की तड़क भड़क की ओर आकर्षित होने के कारण अधिक पैसे कमाने की जरूरत पड़ती है।

विवाह शादियों में, मृतभोजों तथा अन्य उत्सवों पर अनावश्यक खर्च किये जाते हैं। अपने को अमीर साबित करने के लिए फिजूल खर्ची का आश्रय लिया जाता है। जो जितनी बेपरवाही से जितना अधिक पैसा खर्च कर सकता है वह उतना ही बड़ा अमीर समझा जाता है। विवाह शादी के समय ऐसी बेरहमी के साथ पैसा लुटाया जाता है जिससे अनेकों व्यक्ति सदा के लिए कर्जदार ओर दीन हीन बन जाते हैं। जिनके पास लुटाने को, दहेज देने को धन नहीं उनकी सन्तान का उचित विवाह होना कठिन हो जाता है। समाज में वे ही प्रतिष्ठित और बड़े समझे जाते हैं, जिनके पास अधिक धन है।

आज के मनुष्य का दृष्टि कोण अर्थप्रधान हो गया है। उसे सर्वोपरि वस्तु धन प्रतीत होता है और उसे कमाने के लिए बेतरह चिपटा हुआ है। इस मृग तृष्णा में सफलता सबको नहीं मिल सकती। जो अधिक सक्षम, क्रिया कुशल, अवसरवादी एवं उचित अनुचित का भेद न करने वाले होते हैं वे ही चन्द लोग बाजी मार ले जाते हैं। शेष को जी तोड़ प्रयत्न करते हुए भी असफल ही रहना पड़ता है। कारण यह है कि परमात्मा ने धन उतनी मात्रा में पैदा किया है जिससे समान रूप से सबकी साधारण आवश्यकताएं पूरी हो सकें। छीना झपटी में कुछ आदमी अधिक ले भागें तो शेष को अभावग्रस्त रहना पड़ेगा। उनमें से कुछ के पास कामचलाऊ चीजें होंगी तो कुछ बहुत दीन दरिद्र रहेंगे। यह हो नहीं सकता कि सब लोग अमीर बन जावें।

आज गरीब भिखमंगे से लेकर, लक्षाधीश धन कुबेर तक, ब्रह्मचारी से लेकर संन्यासी तक लोगों की वृत्तियाँ धन संचय की ओर लगी हुई हैं। जब कोई एक उद्देश्य, प्रधान हो जाता है तो और सब बातें गौण हो जाती हैं। आज जन साधारण का मस्तिष्क, देश, जाति, धर्म, सेवा, स्वास्थ्य, कला, संगीत, साहित्य, संगठन, सुरक्षा, सुसन्तति, मैत्री, यात्रा, मनोरंजन आदि की ओर से हट गया है और धन की तृष्णा में लगा हुआ है। इतना होने पर भी धनवान तो कोई विरला ही बन पाता है पर इन, जीवन की अत्यन्त महत्वपूर्ण आवश्यकताओं से सबको वंचित रहना पड़ता है।

अब से पचास चालीस वर्ष पहले के समय पर हम दृष्टिपात करते है तो मालूम पड़ता है कि उस समय लोगों की दिनचर्या में धन कमाने के लिए जितना स्थान रहता था-उससे अधिक समय वे अन्यान्य बातों में खर्च किया करते थे। मनोरंजन खेल, संगीत, रामायण पढ़ना, किस्से कहानियाँ, पंचायतें, पैदल तीर्थ यात्राएं, सत्संग, परोपकार आदि के बहुत कार्यक्रम रहते थे। बालकों का बचपन-खेलकूद और स्वतंत्रता की एक मधुर स्मृति के रूप में उन्हें जीवन भर याद रहता था। पर आज तो विचित्र दशा है। छोटे बालक, प्रकृति माता की गोदी में खेलने से वंचित करके स्कूलों के जेलखाने में इस आशा से बन्द कर दिये जाते हैं कि बड़े होने पर वे नौकरी चाकरी करके कुछ अधिक धन कमा सकेंगे। लोग इन सब कामों की ओर से सामाजिक सहचर्य की दिशा से मुँह मोड़ कर बड़े रूखे, नीरस, स्वार्थी, एकाकी, वेमुरब्बत होते जाते हैं। जिसे देखो वही कहता है-“मुझे फुरसत नहीं?” भला इतने समय में करते क्या हो? शब्दों के हेर फेर से एक ही उत्तर मिलेगा-धन कमाने की योजना में लगा हुआ हूँ।

इस लाभ प्रधान मनोवृत्ति ने हमारा कितना सत्यानाश किया है इसकी ओर आँख उठाकर देखने की किसी को फुरसत नहीं। स्वास्थ्य चौपट हो रहे हैं, बीमारियाँ घर करती जा रही हैं,आयु घटती जा रही है, इन्द्रियाँ समय से पहले जवाब दे जाती हैं, चिन्ता हर वक्त सिर पर सवार रहती है, रात को पूरी नींद नहीं आती, चित्त अशान्त रहता है, कोई सच्चा मित्र नहीं जिसके आगे हृदय खोल कर रख सकें, चापलूस, खुदगर्ज, लुटेरे और बदमाश दोस्तों का भेष बना कर चारों ओर मंडराते हैं, स्त्री पुरुषों में एक दूसरे के प्रति प्राण देने की आत्मीयता नहीं, सन्तान की शिक्षा दीक्षा का कोई ठिकाना नहीं, अयोग्य लोगों के सहचर्य से उनकी आदतें बिगड़ती जा रही हैं। परिवार में मनोमालिन्य रहता है। मस्तिष्क में नाना प्रकार के भ्रम, जंजाल, अज्ञान अन्धविश्वास घुसे हुए हैं, चित्त में अहंकार, अनुदारता, काम, क्रोध, लोभ, मोह, असंयम का डेरा पड़ा हुआ है, समाज से श्रद्धा सहयोग और सहानुभूति की प्राण वायु नहीं मिलती, मनोरंजन के बिना हृदय की कली मुर्झा गई है। धर्म, त्याग, सेवा, परोपकार, सत्संग, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान के बिना आत्मा मुरझाई हुई पड़ी है। इस प्रकार जीवन की सभी दिशाएं अस्त व्यस्त हो जाती हैं, चारों ओर भयंकर आरण्य में निशाचर विचरण करते दिखाई पड़ते हैं। हर मार्ग में कूड़ा करकट झाड़ झंखाड़ पड़े दीखते हैं। कारण स्पष्ट है-मनुष्य ने धन की दिशा में इतनी प्रवृत्ति बढ़ाई है कि केवल उसी का उसे ध्यान रहा है और शेष सब ओर से उसने चित्त हटा लिया है। जिस दिशा में प्रयत्न न हो, रुचि न हो, आकाँक्षा न हो, उस दिशा में प्रतिकूल परिस्थितियों का ही विनिर्मित होना संभव है। उत्तम तो वही क्षेत्र बनता है जिस ओर मनुष्य श्रम और रुचि का आयोजन करता है।

अब से थोड़े समय पूर्व लोगों के पास अधिक धन न होता था, वे साधारण रीति से गुजारा करते थे, पर उनका जीवन सर्वांगीण सुख से परिपूर्ण होता था। वे थोड़ा धन कमाते थे पर एक एक पाई को उपयोगी कार्यों में खर्च करके उससे पूरा लाभ उठाते थे। आज अपेक्षाकृत अधिक धन कमाया जाता है पर उसे इस प्रकार खर्च किया जाता है कि उससे अनेकों शारीरिक एवं मानसिक दोष दुर्गुण उपज पड़ते हैं और क्लेश कलह की अभिवृद्धि होती है। सुख की उन्नति की आशा से-सब कुछ दाव पर लगाकर आज मनुष्य धन कमाने की दिशा में बढ़ रहा है पर उसे दुख और अवनति ही हाथ लगती है।

गृहस्थ संचालन के लिए धन कमाना आवश्यक है, इसके लिए शक्ति अनुसार सभी प्रयत्न करते हैं और करना भी चाहिए। क्योंकि भोजन, वस्त्र, गृह, शिक्षा, आतिथ्य, आपत्ति आदि के लिए धन आवश्यक है। पर जितनी वास्तविक आवश्यकता है उसे तो परिवार के सदस्य मिल जुल कर आसानी से कमा सकते है। दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नहीं-हाय हाय तो मनुष्य धनवान बनने के लिए किया करता है। इस परिग्रह वृत्ति ने हमारे जीवन को एकाँगी, विशृंखलित एवं जर्जरीभूत कर दिया है। रोटी को हम नहीं खाते, रोटी हमें खाये जा रही है।

हमारा व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन बुरी दशा में है। उसमें अगणित दोषों का समावेश हो गया है। इसे सुधारने और संभलने के लिए हमारी अधिक से अधिक शक्तियाँ लगने की आवश्यकता है, यदि इस ओर ध्यान न दिया गया तो हम सब निकट भविष्य में ऐसे गहरे गड्ढे में गिरेंगे कि उठना कठिन हो जायगा। चारों ओर से विपत्ति के बादल आ रहे है, यदि आत्म रक्षा का प्रयत्न न किया गया तो यह धन, जिसकी तृष्णा से सिर उठाने के लिए फुरसत नहीं, यही एक भारी विपत्ति बन जायगा। हमें बेतरह लुटना पड़ेगा।

खुदगर्जियों को छोड़िये, “अपने मतलब से मतलब” रखने की नीति से मुँह मोड़िए, धनी बनने की नहीं-महान् बनने की महत्वाकाँक्षाएं कीजिए, आवश्यकताएं घटाइए, जोड़ने के लिए नहीं जरूरत पूरी करने के लिए कमाइए, शेष समय और शक्ति को सर्वांगीण उन्नति के पथ पर लगने दीजिए। संचय का भौतिक आदर्श-परिश्रमी सभ्यता का है, भारतीय आदर्श त्याग प्रधान है, इसमें अपरिग्रह का महत्व है, जो जितना संयमी है, जितना संतोषी है वह उतना ही महान बताया गया है। क्योंकि जो निजी आवश्यकताओं से शक्ति को बचा लेगा वही तो परमार्थ में लगा सकेगा। हम मानते हैं कि जीवन विकास के लिए पर्याप्त साधन सामग्री मनुष्य के पास होनी चाहिए। पर वह तो योग्यता और शक्ति की वृद्धि के साथ साथ प्राप्त होती है। आज लोग योग्यताओं को, शक्तियों को बढ़ाने की दिशा में प्रयत्न नहीं करते वरन् जो कुछ लंगड़ी लूली शक्ति है उसको धन की मृगतृष्णा पर स्वाहा किये दे रहे हैं। नगण्य, लंगड़ी लूली शक्तियों से अधिक धन कमाया जाना असंभव है। ऐसे लोगों के लिए तो बेईमानी ही अधिक धन कमाने का एक मात्र साधन होता है।

आइए, मनुष्य जीवन का वास्तविक आनन्द उठाने की दिशा में प्रगति करें। धन लालसा के संकीर्ण दायरे से ऊपर उठें, अपनी आवश्यकताओं को कम करें और जो शक्ति बचे उसे शारीरिक, सामाजिक एवं आत्मिक सम्पदाओं की वृद्धि में लगावें, उस के द्वारा ही सर्वांगीण सुख शान्ति का आस्वादन किया जा सकेगा।

Like to share it

Address

Bihar, Jharkhand, West Bengal, Delhi, Madhya Pradesh, Uttar Pradesh, Haryana, Rajasthan, Gujrat, Punjab, India
Phone: +91 (987) 145-3656