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शिक्षा का महत्व या एक जरुरत

धानुक समाज: शिक्षा का महत्व या एक जरुरत

धानुक समाज:शिक्षा की जरुरत

धानुक समाज: शिक्षा का महत्व या एक जरुरत

धानुक समाज: शिक्षा का महत्व या एक जरुरत

हमारे समाज में शिक्षा एक सबसे बड़ी समस्या है जबतक हम उसपे काबू नहीं पा लेते है तबतक समाज आगे नहीं बढ़ सकता है। समाज में शिक्षा की भारी कमी है जिसमे हम अभी तक अपने आप को जोड़ नहीं पाए। हर कोई समाज के लिए बात करता है लेकिन मुझे लगता है समाज में जबतक इस बात की जागरूकता नहीं फैलेगी की समाज आखिर बढ़ेगा कैसे तो इन ढेर सारी बातों पर बात करना बेमानी होगा।

शिक्षा ही एक ऐसा हथियार है जो हमें अपना स्थान समाज के अग्र पंक्ति में दिला सकता है। शिक्षा के बिना हमारे समाज का स्थान चिन्हित नहीं किया जा सकता है। उसको चिन्हित करने के लिए हमें शिक्षा पर जोड़ देना जरूरी है। मैं तो व्यक्तिगत तौर पर कहूँगा की हम कसम खाये की आज जो भी हो हम अपने बच्चों को पढ़ाएंगे तबतक जबतक वह अपना जीवन को ऐसे पथ पर ना ले आये जहाँ से वह ना सिर्फ अपनी ज़िन्दगी और परिवार के साथ साथ समाज में भी अपना एक महत्वपूर्ण योगदान दे।

आप सभी से सहयोग की अपेक्षा है की हम अपने समाज में शिक्षा की ज्योति कैसे जलाये आप सभी से सुझाव देने का आमंत्रण दिया जाता है। हमारा सुझाव है कि हमें प्रखंड स्तर पर शिक्षा को शुरू करने के लिए क्या किया जाए ताकि हम अपने समाज में आखिरी पंक्ति में बैठे उस विद्यार्थी तक शिक्षा का जोत जला सके जो वाकई में पढ़ लिखकर कुछ करना चाहता है। हमारा उद्देश्य हर उस विद्यार्थी की शिक्षा को महत्व देना है जिसके अंदर वाकई में कुछ कर गुजरने की क्षमता है और आगे चलकर समाज को आगे ले जाने में सहायक हो। समाज में ऐसे मेधावी छात्रों की कमी नहीं है कमी है तो बस उसे निखारने की वह अपने आप को पहचाने और समाज को आगे ले जाने में अपना सहयोग दे सके।

हमारे समाज में कई ऐसे धुरंधर है जो अपने अपने क्षेत्र में महारत हासिल किये हुए है जरुरत है उन लोगो को समाज में आगे लाकर उनको सामाजिक सहयोग के लिए मजबूर करना ताकि वे आगे आये और अपने समाज को अपने अपने क्षेत्र के अनुसार भारी सहयोग दे सके। ताकि हम शिक्षा के क्षेत्र में अपने समाज को एक महत्वपूर्ण स्थान दिला सके।

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सामाजिक व्यक्ति – उसकी पहचान , सक्षमता

सामाजिक व्यक्ति - उसकी पहचान , सक्षमता

सामाजिक व्यक्ति – उसकी पहचान , सक्षमता

अगर कोई व्यक्ति एक जगह या एक संगठन के साथ टिककर नहीं रह सकता है वह समाज को दिशा नहीं दे सकता है क्योंकि वह खुद दिशाहीन है।

 

हमारे यहाँ एक दिक्कत है हम अपने आप को छोड़कर दुसरो को सपोर्ट करने में विश्वास रखते है, जबकि अगर आप अपने आप को जबतक सक्षम नहीं बनाएंगे तब तक आप कैसे किसी की सहायता कर पाएंगे। अगर मैं भटक जाउंगा तो आप क्या करेंगे, सवाल करेंगे या नहीं। यही हम गलत हो जाते है। अगर हम भटक गए तो आप पहले समझिये अच्छी बात है लेकिन आप जबतक मुझसे सवाल नहीं करेंगे तबतक मुझे अपनी गलती का एहसास नहीं होगा। जब आप पूछेंगे तो मैं सोचूंगा ना उससे पहले तक तो मुझे पता है मैं सही हूँ। क्योंकि किसी ने अभी तक सवाल नहीं किया, हम पहले अपने अंदर गलती ढूंढने लगते है। क्योंकि जहाँ आपने यह सोचा की समझने का प्रयत्न करेंगे वही आप उसके प्रति सही सोचने लगे, की वह सही हो सकता है।

 

जबतक आप पूछेंगे नहीं उसको सही गलत का फर्क पता नहीं चलेगा, अगर आप पूछेंगे तो आपको जवाब मिलेगा। हो सकता है वह सही हो लेकिन उसको अभी तक सोचने का मौका ही नहीं मिला। क्योंकि आपने ऊँगली उठाई तो उसको सोचने का मौका मिलेगा। जब सवाल जवाब होता है तो एक भावार्थ निकल कर आता है जिससे पता चलता है क्या सही है क्या गलत, हो सकता है आपने सवाल किया वह गलत है तो सामने वाला आपको बताएगा कि मैं नहीं आप गलत है तो सोचिये एक आदमी अभी तक गलत था जो अब दोनों सही होने जा रहा है।

 

जी हां इसमें कोई दो राय नही है लेकिन जब आप बात करते है तो बहुत सारी बाते पता चलती है। जिस दिन हम किसी भी बात के मंथन से दूर भागना बंद करेंगे उसी दिन हम सही मायने में आगे बढ़ पाएंगे, उससे पहले नहीं क्योंकि हमें किसी बात की दार्शनिक मंथन रुचिकर नहीं लगने से ऐसा करते है जो जाने अनजाने हम अपने आप की सहायता नहीं कर रहे है। सामाजिक काम में कभी कभी आपको नीरसता का सामना करना पड़ सकता है जिससे यह मतलब नहीं की उस बात का समाज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। बस सोचने की बात है जिससे समाज में फैली अलग अलग भ्रांतियों को मिटाया जा सकता है।

 

किसी भी विषय को आप रुचिकर नही बनाएंगे तब तक आप सफल नहीं हो सकते है। रुचिकर तभी होगा जब समाज के अंदर बैठे आखिरी पंक्ति में बैठे लोग उसमे अपनी रूचि ना दिखाई दे।

 

यह अवश्य है कि एक नायक होता है जो उनलोगो में जोश भरता है किसी भी विषय के प्रति और उसका अगुआ होने का सही मायने में अपने आप को साबित करता है।

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छोटी मगर मोटी बाते

छोटी मगर मोटी बाते - अपने अपने शहर,गांव, मुहल्ले, पंचायत, टोला मे जितने जाति के लोग है

छोटी मगर मोटी बाते – अपने अपने शहर,गांव, मुहल्ले, पंचायत, टोला मे जितने जाति के लोग है

सारे घानूक भाईयो,बहनों से निवेदन है की वह जहाँ भी है अपने अपने शहर,गांव, मुहल्ले, पंचायत, टोला इत्यादि मे जितने भी अपने जाति के लोग है उन सभी से अपना सम्पर्क बनाये और कोशिश करे की महीने मे एक बार एक जगह इकठ्ठा हो और आपस मे एक दुसरे के बारे मे जानकारी ले एक दुसरे की मदद करे सुख दुख बाटे फिर देखिये हमारी जाति के लोगों मे ऐसी एकता उत्प्नन होगी की हम लोग किसी भी परिस्थितियों से निपटने के लिए सक्षम रहेंगे।

वो जहाँ भी है वहाँ का वोटर लिस्ट ले या नेट पर से अपने मतदान क्षेत्रों का वोटर लिस्ट डानलोड कर ले उन मे से जितने भी अपने जाति के लोग है उनका एक लिस्ट बना ले तथा कभी भी अपके घर मे कोई सा भी खुशी का माहौल हो उन लोगों को जरूर निमंत्रण दे इस से जितने भी अपने जाति के लोग है उन सभी को आपस मे एक दुसरे के बारे मे जानने का मौका मिलेगा और घानूक जाति की एकता बढेगी।

आप लोगों ने कभी सोचा है मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों, मे एकता का कारण, मुसलमान हर स्रुकवार के दिन एक ही लोगों से एक ही महजीद मे बार बार मिलते है,ईसाई हर रविवार के दिन एक ही चर्च मे एक ही शहर के लोगों से मिलते है,सिख भी हर रविवार को एक ही गुरुद्वारा मे एक ही शहर के लोगों से मिलते है आप ही सोचिये एक ही लोगों से बार बार मिलेंगे तो एक दुसरे मे नजदीकिया तो बढ़ेगी ही एकता भी बढ़ेगी। पर क्या हिन्दु एक ही मंदिर मे एक साथ मिलते है नहीं हम शनिवार को तो तुम रविवार वो सोमवार को बस यही कमजोरियों है हम लोगों की। इसीलिए कहते है सभी घानूक भाईयों से महीने मे एक बार जरूर इकटठा हो एक ही जगह।

हमारा एक छोटा सा सुझाव है उन सुखी सम्पन्न घानूक परिवारो से की अगर वो घर मे काम करनेवाला या करनेवाली,ड्राईवर रखे तो अपने ही जाति के उन लोगों को रखे जो पैसे के मामले मे बेबस व लाचार हो,दूघ,सब्जियां, राशन का समान ईत्यादी भी अपने ही जाति के लोगों से ले।

कोशिश करते रहे और समाज को ऊपर लाने के लिए व्यक्तिगत तौर पर जो कर सकते है अवश्य करे। यह शुरुआत होगी जब तक हम नहीं बदलेंगे तब तक समाज के बदलने की कल्पना नहीं कर सकते है।

धन्यवाद!
डॉ भवेश
नोट: कोई भी सुझाव सादर आमंत्रित है तथा यह मेरा अपना विचार है। इसमें कही से किसी की भावना को दुःख पहुँचाने का कोई इरादा नहीं है।

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