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दहेजप्रथा एक अभिशाप

दहेजप्रथा एक अभिशाप - दहेज समाज के लिय काफी हद तक घातक साबित हुआ है

दहेजप्रथा एक अभिशाप – दहेज समाज के लिय काफी हद तक घातक साबित हुआ है

दहेज़ प्रथा उन्मूलन पर मैं अपने बिचार को रख रहा हूँ:
1.दहेज खास कर हमारे समाज और हमारे सामाज के समतुल्य लोगो के लिय काफी हद तक घातक साबित हुआ है और हो रहा है। जिसका मुख्य कारणों में से एक कारण दहेज़ प्रथा भी है, अगर हमारे सामाज के बेटियाँ 15-16 की उम्र को पार करती है तो गार्जियन को उसकी शिक्षा के बजाय उसकी शादी की चिन्ता सताने लगती है आखिर क्यों, क्योंकि गार्जियन चाहे तो पढ़ा तो सकता है, लेकिन हमारे धानुक सामाज में बहुत सारी बंदिशे है। हमें उस बंदिशे को खत्म करने की जरुरत है।

2. हमारे सामाज में आज भी सुन्दर चाम की पहचान दी जाती है नाकि सुन्दर काम को, थोड़ा सोचनीय है उन माँ बाप को कैसा लगेगा, जो अपनी बेटी को ग्रेजुएशन या पोस्ट ग्रेजुएशन करवाया है और जब शादी की बात चलती है तो सिर्फ उस लड़की का रिश्ता नहीं हो पाता है क्योकि की वो सवाली रंग की है। अब मजबूरन गार्जियन को मोटी दहेज़ की राशि देकर या तो फिर जैसे तैसे शादी करनी परती है।
हमारे समाज को सचेत रहना है की हमें सबसे पहले शिक्षा का महत्त्व दे और उस को अपनाये बिना डिमाण्ड करे की लड़की नाटी है या पतली है या काली है, क्योकि अगर हमारे परिवार में एक बहु या बेटी शिक्षित होती है तो पूरा परिवार एक प्रोपर वे में चलता है और आने वाली पीढ़ी भी सदृढ़ और मजबूत होती है।और इस से एक ऐसे पक्ष की शुरुआत भी होगी जिससे की ज्यादा से ज्यादा हमारी सामाज की बेटियां शिक्षित होगी।

3.दहेज़ मुक्त धानुक सामाज हमारी ये सोच होनी चाहिये और शायद ये काम जमीनी स्तर पे चल रहा है या नहीं, मालूम नही कौन चला रहा और यदि कह देने से हमारी धानुक सामाज दहेज़ मुक्त हो जाती है तो ये बकवास और फालतू की बाते है हमें वाकई धानुक दहेज़मुक्त सामाज बनाना हे तो हमें अपने आप से शुरू करना होगा और हमें ये भी मालूम नहीं की कितने सदस्य इसमे अपने आप को पूर्ण समझते है क्योकि शुरुआत तो अपने से ही होगी। अगर मेरे भाई की शादी होनी है तो बिना दहेज़ अगर मेरे बेटा की शादी करनी होगी तो दहेज़ मुक्त, लेकिन जब वो ही अपने ही लोगो की शादी में लोभ का धारण करता हो, दहेज़ लेता हो तो बात वही हुई ना,की मुँह में राम बगल में छुरी। अगर आप लोग सही में बिना किसी लोभ के अगर अपने सामाज को दहेज़ मुक्त बनाना चाहते हे तो खुल के सामने आये ,अपना नाम जरूर दे की वाकई आप भी ऐसा सोचते हे, क्योकि हमें विश्वासघात किसी के साथ नहीं करनी है जरूरी नहीं सभी इस से जूड़ ही जाय, लेकिन जो वाकई अपने मन में ये भाव रखते है एक बार जरूर बताइये।

4.सबसे बड़ी बात की हमें धानुक जाती सामाज की बरीयता दी जानी चाहिए ना की किसी अन्य सामाज को और ये भी हो सकता है की हमारे द्वारा शुरू की गई धानुक दहेज़ मुक्त प्रथमद्विवर्सिय योजना यानि की 2 बर्ष के अंत तक हमें पासिंग परिणाम देना है अगर बिहार में 500 जागरूक धानुक समाज है तो ,500*30/100=150 दहेज़ मुक्त शादिया होनी चाहिए।
और ये जरूरी नहीं की किसी जिला विशेष जैसे -कटिहार या सीवान या आरा या मोकामा हो।
शायद मेरा परिणाम दरभंगा या मधुबनी,नेपाल, या छपरा या किसी अन्य जगह भी क्रन्ति ला सकती है।
इसलिए हमारी ये भावना होनी चाहिये की हम धानुक है चाहे भारत के किसी भी कोने का क्यों न हो, लेकिन हमें अपने घर यानि बिहार से ये मिशन चालू करनी है।चाहे कोई भी जिला क्यों न हो बिहार के हमें धानुक समाज में कोई असमानता नहीं होनी चाहिए।

धन्यवाद!
अमरजीत महतो
नोट: कोई भी सुझाव सादर आमंत्रित है तथा यह मेरा अपना विचार है। इसमें कही से किसी की भावना को दुःख पहुँचाने का कोई इरादा नहीं है।

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सामाजिक उत्थान कैसे हो सकता है

सामाजिक उत्थान कैसे हो

सामाजिक उत्थान कैसे हो

सामाजिक उत्थान कैसे हो – धानुक समाज के अंदर विश्वास की सख्त कमी है जिसकी वजह से हमेशा हम आपसी बिखराव की कगार पर होते है। हमारे अंदर जो आत्मविश्वास की कमी है वह प्राकृतिक है। क्योंकि ऐसी प्रवृती किसी दूसरे समाज में नहीं पायी जाती है। दुसरो की बातो को जल्दी ग्रहण करना भी बड़ी खामी है, दूसरे के बहकावे में जल्दी आ जाना, जिसका नतीजा हम आज तक भुगत रहे है। हमारी एकता ही हमारा उद्धार कर सकती है। जब तक हम लाखो की संख्या में एक नहीं होंगे हमारे समाज की भलाई नहीं हो सकती है। हमे आपस में सामंजस्य बनाना होगा, हमारी आपस की सहमति भी जरुरी है, हमारे समाज के लोगो का विश्वास भी जरुरी है। मेरी चिंता इस बात को लेकर भी है हम कितने असहनशील है, की हमे किसी एक व्यक्ति का सन्देश सही नहीं लगता है तो हम एक दूसरे पर दोषारोपण से भी बाज नहीं आते है।

हमारे कुछ सवाल है अपने समाज के कर्ता-धर्ता से जो निम्नलिखित है:

  • क्या हम ऐसे समाज को आगे ला पाएंगे?
  • क्या हमारे समाज की समझ एक तरह की हो पायेगी?
  • क्या हम कभी एक हो पाएंगे?
  • क्या हमारी मानसिकता एक होगी समाज को आगे लाने के लिए?

इस बात को हमारे समाज के लिए समझना पड़ेगा जिस समाज में 80-90% लोग आज भी गरीबी रेखा से नीचे आते है तो थोड़ा ध्यान रखा जाये। हमे सबको साथ लेकर चलना है लेकिन बहुतायत की बातो का समर्थन करते हुए आगे बढ़ना होगा। बिना पैसे के कोई सामाजिक कार्य नही हो सकता है मानते है लेकिन हमे यह भी समझना होगा की हमारे समाज में कुछ ऐसे लोग भी है जिनकी आर्थिक स्तिथि वैसी नहीं है। क्योंकि उनके मन में हीन भावना पैदा ना हो इसीलिए सबका सहयोग और साथ जरुरी है। जब जरुरत होगी तब जो भी मजबूत होंगे समाज से वही तो मदद करेंगे। जब तक हम साथ नहीं चलेंगे हमारी कमजोरी सबको झलकती रहेगी। समाज एक व्यक्ति के कहने से ना तो आगे बढ़ता है और ना ही उसका उद्धार संभव है। समाज सबको साथ रखने से बढ़ता है। पैसा तो एक सीढ़ी है लक्ष्य तक पहुँचने के लिए और समाज को थोड़ा समय दे और सबको योगदान देने का मौका दे तभी समाज का भला होगा। हर आदमी बड़ा ही होता है, हर आदमी का अपना अपना योगदान है समाज के लिए, लेकिन हम यहाँ अपने समाज के लोगो के लिए इकठ्ठा हुए है। उनका सम्मान करना सीखना होगा हमे। कहते है हम जैसा खाते है, जैसा पहनते है, जैसे समाज के साथ रहते है उसी की वाणी हम बोलते है, हम भी उसी समाज से आते है तो हमे उसके बारे में सोचना होगा।

 

आप लोगो के सहयोग से हम अपने इस लक्ष्य में कामयाब होंगे। आपलोगो से हाथ जोड़कर करबद्ध प्रार्थना है की हम और आप आपस में प्यार बढ़ाये और एक दूसरे के सुख दुःख में साथ दे। हमारा लक्ष्य आपस में समाज के अंदर प्यार और सहिष्णुता और एकता स्थापित करना है। आज जिस दौर से हम गुजर रहे है यह दौर काफी संवेदनशील और नाजुक है जहाँ से हम अपने समाज के युवाओ को यह समझाने का प्रयत्न करे की हमें इस समाज के साथ कदम से कदम मिलाकर इस देश के विकाश में योगदान करना है। हमारा भी बराबर का हक़ बनता है और इस संविधान ने यह बराबर का हक़ दिया है जीने का और हमे संवैधानिक तौर पर आगे बढ़ना पड़ेगा। किसी भी संगठन की मजबूती और उसका असर तब व्यापक होता है जब आप संख्या बल के स्तर पर उसे ज़मीन तक लेकर जाए। हमे अपनी ज़मीन तैयार करनी है, हमे अपने निचले तबके के भाईओं को जागना है। हमारी बहुत सारी कमजोरियां है जिससे हमे रूबरू होना अतिआवश्यक है। जिसके बिना हम अपने समाज के उथ्थान के बारे में सोच भी नहीं सकते। 

जय धानुक, जय भारत।

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धानुक समाज की प्रकृति

धानुक समाज की प्रकृतिधानुक समाज की प्रकृति –  बिना समाज विकास के आप जीत की कामना नही कर सकते विकास ही नही और भी बहुत सारे मुद्दे है। अब वह दिन दुर नही जब बिहार मे भी पताका फहरायेगा धानुक समाज का, लेकिन अभी इसकी पहल कहा जाय तो बेमानी होगी हमारे अपने बिहार मे अपनी जाती के बहुत नेता हुए उन्होने धानुक जाती का नाम ले कर भवसागर पार कर ली परन्तु हमे सागर मे ही छोड़ दिया। जिसका परिणाम यह हुआ की आज हमे इतना संघर्ष करना पर रहा है मैं अभी भी कहना चाहता हूँ की इस लड़ाई को राजनिति की बली नही चढ़ने देगे इसका ध्यान रखना होगा। यह लड़ाई एक पारम्पपरिक लड़ाई है नेतृत्व की बात की जाये तो पहल कही ना कही से तो करनी होगी और जो भी पहल कर रहे है उन पर हमे विस्वास की डोर जमाये रखनी होगी चाहे नेतृत्व आप करे या हम। अपने बिहार मे ही अभी तीन संगठन काम कर रहा है लेकिन सबका उदेश्य एक ही है। लेकीन जब उनसे हमने बात की तो सब की अपनी राय है। सब एक दुसरे पर दोषारोपन ही कर रहे है क्या यह उचित है जब धारा एक है तो हम सभी विपरित धारा में क्यो बह रहे है, और इसका मुल कारण है आपसी विश्वास की कमी। इसीलिए मैं कहता हूँ पहले हमे एक दुसरे पर विस्वास करना सीखना होगा। हमारे अपने मे ही विस्वास की इतनी कमी है की चाह कर भी हम विस्वास का डोर नही थाम पा रहे है क्या कारण है हम इतने जलनशील है की यह ताप हमे या हमारे विस्वास को जलाने मे सक्षम है अभी इस मुद्दो पर बहुत सारे दोस्तो से बात हुई उनका इशारा बहुतो की ओर था, मैं नाम नही लेना चाहता हूँ हमने बहुत जाती के नेताओ को देखा है जो भी हमारे नेता है उससे भी ज्यादा गिरे हुए है पर क्या हम कभी उसकी आलोचना करते है या कभी उनकी जाती के ही लोग उसकी आलोचना करते देखा है आपने, तो नही और गलती से उनके नेता का उसके सामने आपने गलत कह दिया तो समझ लिजिये क्या से क्या होने का डर सताने लगेगा क्योकी वह कितने ही बुरे है पर वह उसके नेता है लेकीन हमारे साथ ऐसा नही होता है लोग तो विरोध करते ही है हम भी विरोध करने लगते है जिससे बसा बसाया समाज फिर एक होने के लिए तरसते रहते है हमे भी मन मे विस्वास लाना होगा की हम जिसके नेतृत्व मे चल रहे है वह हमारे लिए परम सार्थ है हमे कही सुनी बातो को भुलना होगा हमे जड़ की नही जमात की जरूरत है हमे टकराव नही दोस्ती की जरूरत है हमे अंह की नही अंह मिटाने की जरूरत है तभी हम कल्पना कर सकते है, इस समाज निर्माण का संयम रखते हुए।

 

कही पर एक मुद्दा चल रहा था की आरक्षण खत्म होना चाहिये मैं भी सहमत हूँ इस मुद्दे पर, लेकिन उस से पहले बहुत चीजों पर विचार किया जाये। क्या भारत मे सबको समानता का अधिकार मिला हुआ है? इस पर गौर करने वाली बात भी है आज भी भारत मे ऊँची जाती के लोगो का बोल बाला है वह उन कुर्सी पर बैठे है जहाँ से नीती तैयार होता है और भारत के गरीबो पर थोपा जाता पहले उसे खतम करे भारत मे समानता अधिकार के चलते सब ऊँची जाती और निचली जाती के बच्चे एक साथ वहाँ शिक्षा प्राप्त करे जहाँ अधिकांश बच्चे (सरकारी स्कुल) में शिक्षा ग्रहण करे तब आप कहे की आरक्षण गलत है वह नही हो सकता है क्योंकि आपके बच्चे प्राइवेट स्कुल में पढ़कर साहेब बन कर हुकूमत करेंगे हमारे बच्चे सरकारी स्कुल मे घिस घिस कर पढ़ने के बाद सब दिन गुलामी करेगे तो यह समानता बनाये, मैं भी आरक्षण की बात नही करुंगा जब यह संभव नही तो हमे मिलने वाला अधिकार देना होगा।

 

जिस बात को कभी जान अगर पाता हूँ तो प्रयास करता हूँ की कही से शिक्षा मिल जाये पर कुछ लोग नही अपना ज्ञान को ही वह सर्वोपरी मान बैठे है जिसका परिणाम यह हो रहा की वह तोड़ते ज्यादा है, जोड़ना भुल गये है वह अपना अधिकार दुसरो के लिए उपयोग करते है अपना ही अधिकार पाने मे शर्म महसुस कर रहे है क्या यह नैतिक सवाल हमे मिलने या आगे बढ़ने देगा मन क्षुब्ध हो जाता है क्या इसी के लिए हम आप इतना मेहनत करते है की हम संजोये और कुछ आ कर बिगाड़ दे हमारे गाँव के कुछ लोगो ने फोन किया भैया आप समाजीक चेतना की बात करते है और आपके ही ग्रुप मेम्बर ताना खिच रहे है इस लिए सब्र का बॉन्ध टुट गया सा लगता है। समाज की बातो को जोडने का कम, तोड़ने का ज्यादा चल रहा है। क्या इसी के लिए समाज निर्माण किया गया था की समाज को जगाया जाय। मैं पहले ही कहा था की समाज मे अनेको लोग है सभी की विचार धारा अलग हो सकती है पर भावना नही पर अपनी जाती का जो संस्कार है हम उससे अलग नही हो पाते है जलन और टांग खीचना क्या यही हमारी मानसिकता रह गई है।

 

आप अपनी भ्रमित सोच को निजी सोच मे तब्दील कर रहे है अगर आप कहते है फलां आदमी अपने निजी स्वार्थ के लिए यह काम कर रहा है और उसी सोच को आप हम सभी के बीच रख रहे है जो उचीत नही है पहले उन विरोधी भाई से भी आग्रह करूगा की हम नही जमीन पर आप ही अवाज तो उठाओ हम सभी आपके साथ है पर ऐसा नही आप सिर्फ एक शिगुफा छोड़ देना है की पहला आदमी आप को युज कर रहा है और हम अपने मे लड़ रहे है हमे सवाल नही समाज॒ से जुड़ना है। लगता है जैसे कुछ नही हो सकता इस समाज का यहा ज्ञानी तो पैदा होते है पर संस्कार पैदा नही हो रहा है क्यो इतना माथापच्ची करे। मैं यह कहना चाहता हूँ की जब हम सभी के इतना मेहनत करने के बाबजुद ये लोग इसी तरह उधम मचाये रखेंगे तो फिर समय क्यो बरबाद करूँ हम एक दुसरे के भावनाओ को समझ नही पा रहे हम एक दुसरे को शक की निगाहो से देख रहे है हम चाह कर भी आगे की राह पर गौर नही कर रहे है मन की शंका आने पर कही ना कही समाजिक द्वन्द की राजनिती कर रहे है यह हम सभी की परीक्षा की घड़ी है हम डिगे समझ लीजिये यह संघ डिगा, एक बात और जो भी हो रहा है उसमे कही कोई गलत नही है लेकिन उसे बार बार उजागर करगे तो उस जगह को तो कुछ नही होगा पर पर यह संघ कभी स्थापित नही हो पायेगा जरा अपने अंतर्मन से सोचिये। सच मानिये कुछ लोग ऐसी बाते कर अपना स्वार्थ साध रहे है इसलिए हमे एकजुटता का परिचय देना होगा हमे हर एक दुसरे के सुख दुख मे साथ देना होगा और यह जो कारवां चल रहा है बिना गतिरोध से चरम तक ले जाने की हम सब की पुर्ण जिम्मेदारी बनती है। अब फैसला करना है हम सभी को इसे आगे ले जाना है या आपसी मतभेद से इसे यहीं छोड़ना है।

 

हमे अपने पुर्ण ताकत का परिचय देना होगा हमे वह हर पहलू पर गौर करना हे जो समाज हित मे हो किसी भी छोटी से छोटी मीटिंग में भी उन सारे विषय पर चर्चा करना है। कैसे जनसमुह को तैयार किया जाय, कैसे संगठन को मजबुती प्रदान करना है, संगठन के लिए कैसे धन उपार्जन किया जाय, बाहर रह कर हम समाज को केसे संगठित कर पाये, बिहार मे होने वाले आन्दोलन को कैसे गति प्रदान क़ी जाय, इन सभी पर चर्चा करती रहनी पड़ेगी। हम किसी बात को यू ही ले लेते है और कभी कभी उसका अर्थ अपने तरीके से निक़ालते हे जो गलत हो जाता है भावना एक ही होता है पर शब्द अलग हो सकते है माना की हम अलग अलग है भावनाए अलग है पर इसे जोड़ कर नही रखगे तो हम कभी ताकतवर नही बन पायेगे।

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