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Archive for the Social Plan Category

Who is responsible – जिम्मेदार कौन?

हमारे धानुक समाज के संगठन पटना, नालंदा और मिथिला के अलावा किसी और जिले के बारे में नहीं सोच पा रहे है। आजकल इसी क्षेत्र में कुछ ज्यादा ही तितलियों के उड़ने की ख़बरें आ रही है जो दो काम करती है एक तो हवा में ध्वनि प्रदुषण और दुसरा फसलों का सत्यानाश और अपने समाज के लोग भी वही करने में लगे हुए है वे समाज की भलाई के लिए क्या कदम उठने चाहिए वे तो सोच नहीं पाते साथ में सामाजिक ताने बाने को छिन्न भिन्न अवश्य कर रहे है। कोई कहता है हम राजनैतिक संगठन में नहीं है लेकिन उनके लोग लगातार राजनैतिक प्लेटफार्म पर नज़र आते रहते है उनके फेसबुक टाइमलाइन को देखिये तो पता चलता है वे सिर्फ विद्वेष फैलाने के काम में लगे हुए है चाहे वो धार्मिक हो या जातिगत कही से जातिगत भलाई या उनके वास्तविक उत्थान की बात नहीं हो पा रही है। समाज के जो पढ़े लिखे लोग है उन्हें यह तक नहीं पता है की बिहार के किस जिले में किस प्रखंड में कितनी संख्या में समाज के लोग है या किस किस विधानसभा में हम खेल अपने पाले में लाने का माद्दा रखते है। हर जिले में सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक समस्या का स्तर अलग अलग है जो हमारे तथाकथित कर्त्ता-धर्ता इन बातों को समझने में नाकाम रहे है और आप इसको ऐसे समझ सकते है की वे इसका बौद्धिक सर्वेक्षण तक नहीं करवा पाए जमीनी सर्वेक्षण तो दूर की बात है किन्ही से पूछिए तो कहेंगे की हमारी संख्या इतनी लाख है हम किसी को भी हिलाने का दम रखते है लेकिन जब उनसे पूछिए की किस जिले में कितने धानुक होंगे तो बोलती बंद, सवाल है क्यों नहीं १९३१ के जनगणना के अनुसार ही अनुमानित प्रोजेक्शन के आधार अपनी जनसंख्या कितनी हो उसके बारे में सोचा जाय, क्यों नहीं जिलावार इसके बारे में प्रोजेक्शन के आधार संख्या पता की जाय, लेकिन समस्या है की हमारे नेतागण को इन बातों से कोई मतलब नहीं है।

सभी लोग अभी भी सिर्फ मगध और मिथिला में फोकस किये हुए है जो धानुक की एक बड़ी संख्या कोशी क्षेत्र में है उनके बारे में आज तक कोई धानुक संगठन और ना ही कोई नेता बात कर पाया। कुछ लोग अच्छे पढ़े लिखे है उन्हें पता भी है इसका उपयोग कैसे किया जा सकता है लेकिन वे भी नाकाम लग रहे है।

हमारे समाज के लोग जय हो, जय हो, करने में लगे रहते है लेकिन जो संवेदनशील होकर लिखते है उनके बारे में ना तो समाज का कोई नेता बात करना चाहता है ना ही किसी साहित्यिक व्यक्ति की सुधि लेना चाहता है। बस हर व्यक्ति को या तो MLA बनना है या MP बनना। इससे समाज में धरातल पर आमूल चूल परिवर्तन संभव नही है, ना ही किसी नेता के पास कोई खाका नज़र आता है कि वे समाज में शिक्षा को लेकर जो अदूरदर्शिता है उसके बारे में क्या सोच रहा है और नेताओं को तो वैसे भी सोचना नही है। धानुक का जातीय संगठन इतना है कि हर किसी संगठन को कोई ना कोई नेता अपने पॉकेट में लेकर घूम रहा होता है। संगठन के काम को लेकर इतनी अदूरदर्शिता है की कोई भविष्य नही देख रहा है, ना नौकरी बची है ना ही आरक्षण क्योंकि आरक्षण को निजीकरण ने इस तरह अपने अदंर समाहित किया हुआ है कि उसका वजूद ही खत्म नज़र आ रहा है। हर जगह ओबीसी को NFS (नॉट फाउंड सूटेबल) के नाम पर नौकरी नही दी जा रही है। ओबीसी से ज्यादा सीट किसी भी वैकेंसी में EWS की होती है उसपर किसी की कोई नज़र नही है।

लेकिन हमारे नेताओं को बस जिसकी जितनी संख्या उतनी भागीदारी पर सिर्फ MP या MLA बनने की चिंता है। इससे समाज की वास्तविक भलाई तो मुश्किल है साथ में ऐसे नेता अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित तो कर ले रहे है लेकिन समाज के बच्चों का ना तो वर्तमान सुरक्षित है ना ही भविष्य सभी नेताओं की अपनी अपनी बात है की कैसे वे, ये जो वोट है उसको सुरक्षित किया जाय और उसी की जद्दोजहद है यह पूरी की पूरी कवायद। हमारे बच्चें तो पढ़ने से इतना दूर भागते है की उन्हें लगता है इन नेताओं के आगे पीछे करने से उनका या उनके बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो जाएगा। ऐसा नहीं, मैं सभी बच्चो से अपील करता हूँ वे इस पुरे खेल को समझे और आप कहाँ और किस भंवर जाल में फंस रहे है आपको पता नहीं चल रहा है आपके लिए सिर्फ और सिर्फ आपके पडोसी स्वजातीय भाई ही खड़ा हो सकता है और कोई नहीं। आपको कोई भी नेता ना तो यह बताएगा की वैकेंसी क्यों नहीं निकल रही है ना ही यह बताएगा की ओबीसी की वैकेंसी NFS (नॉट फाउंड सूटेबल) के नाम पर कहाँ जा रहा है और ना ही वे यह बताएंगे ओबीसी से ज्यादा सीट किसी भी वैकेंसी में EWS की क्यों होती है। इसमें भी दो बातें है एक तो उन्हें खुद नहीं पता और अगर पता भी हो तो वे नहीं बताएंगे क्योंकि इससे उनकी राजनीती पर असर पड़ेगा।
धन्यवाद।
शशि धर कुमार
नोट: सर्वाधिकार सुरक्षित।

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Society Upliftment Process – समाज कैसे आगे बढ़े

समाज कैसे आगे बढ़ेमैं कुछ सालों से धानुक समाज के लोगो या उससे जुड़े संगठनों से मिल रहा हूँ लेकिन दुर्भाग्य कहिए या भेड़चाल हमें कहीं भी समाज को ऊपर उठाने के लिए किसी भी तरीके का कोई ब्लूप्रिंट नजर नही आ रहा है। मैंने अपनी तरफ से कई सालों से मेरे मन में क्या है, समाज के अंदर क्या क्या समस्याएं है, कैसे उन समस्याओं तक पहुँचा जाय और मैंने उसको चाहे सोशल मीडिया हो या सामाजिक मीटिंगों में सबके सामने खुलकर रखा भी और उसपर कई मीटिंगों में उसपर खुलकर चर्चा भी की तथा कैसे उससे निजात पाने के तरीकों को जमीन पर उतारने की पहल हो, लोगों को उसके बारे में कैसे जागरूक करें, कैसे युवाओं और महिलाओं को इस मुहीम में जोड़ा जाए, काफी कुछ बात किया है आज भी करता रहता हूँ। इसके बारे में अपनी तरफ से कई बार छोटा छोटा ब्लूप्रिंट भी रखा जिसको कई लोगों ने अपनी तरफ से उसको बनाकर लोगों के सामने पेश कर दिया। खैर उससे कोई फ़र्क नही पड़ता है आपने किसी का किया हुआ काम अपने नाम कर लिया बिना यह जाने की यह बौद्धिक संपदा के अंतर्गत किसी की निजी संपत्ति के अंतर्गत आता है फ़र्क इस बात से पड़ता है कि आपने या आपकी संस्था ने उसपर आगे कोई चर्चा नही किया और ना ही उसके बारे में लोगों से उनकी राय माँगी। जो एक कड़ी बननी चाहिए थी वह टूट गयी। और आज भी भी टूटी हुई ही है।

यहीं हम मात खा जाते है हम एक दूसरे को देखते हुए चल रहे है आजकल हमारे युवा भी सामाजिक तरीकों से सोचने के बजाय हर मुद्दे को राजनीति की तरह सोचना शुरू कर देते है की इससे किसको फायदा होगा किसको नुकसान होगा। यह किसी भी तरीके से व्यक्तिगत या राजनैतिक नफे नुकसान से ऊपर उठकर सोचने की जरूरत है। आप किस राजनैतिक पार्टी को समर्थन करते है यह आपका संवैधानिक और व्यक्तिगत फैसला है और मैं हमेशा इसका सम्मान करता हूँ। मेरा मानना है कि आप तबतक इसका सार्वजनिक प्रचार प्रसार ना करे जबतक आप उस पार्टी के प्रार्थमिक सदस्य ना हो, जैसे ही आप यह करते है आप सामाजिक तौर पर निष्पक्ष नही हो सकते है। हम हमेशा यह कहते है पुराने ज़माने के लोगो ने समाज के साथ न्याय नही किया तो सवाल उठता है आज हम कौन से न्याय कर रहे है। हमें अपने आपको जागरूक होने के अलावा हमें अपने आस पास के लोगों को भी जागरूक करने की आवश्यकता है साथ मे हमे किसी भी बात को खुले दिमाग से सोचने की आवश्यकता है।

क्योंकि हमारे दिमाग का खुलापन नही होना हमें आगे बढ़ने से रोक रहा है क्योंकि जैसे ही आप किसी भी मुद्दे पर बात करे उसपर अलग अलग लोगों की मुख़्तलिफ़ विचार मिलेंगे कोई विरोध करेगा कोई समर्थन करेगा और हम यही मात खाते है क्योंकि हमारे संगठनों के कर्ता धर्ता भी यह सोच नही पाते है क्या सही होगा क्या गलत क्योंकि किसी भी मुद्दे पर उनकी अपनी राय नही होती है क्योंकि ना तो इसके बारे में खुद सोचते है ना ही अलग विचातधाराओ को पढ़कर अपनी राय बना पाते है। और यही वजह है कि हमारे लोग असमंजस की स्थिति में रहते है और जबतक आप किसी भी मुद्दे पर अपनी राय नही बनाएंगे तबतक आप दूसरों को सलाह देने की स्थिति में नही होते है। जब आप सलाह देने की स्थिति में नही होते है तबतक आप समाज का नेतृत्व नही कर सकते है। किसी भी मुद्दे पर आप बिना सोचे समझे अगर अपनी राय रखते है वो भी दो टूक जैसे ‘यह नही हो सकता है’, ‘इसका कोई मतलब नही है’ तो यकीन मानिए आप बौद्धिक रूप से समृद्ध नही है। क्योंकि आप किसी भी मुद्दे को सामाजिक तौर पर क्या प्रभाव डालेगा उसके ऊपर मंथन किये बिना अपनी राय नही दे सकते है।

हो सकता है कईयों को मेरी यह बातें बुरी लगे लेकिन हम सबकों मिलकर सोचना पड़ेगा कि समाज कैसे आगे बढ़ेगा खासकर मैं अपने सभी पढ़े लिखें आगे बढ़े हुए दोस्तों से आग्रह करना चाहता हूँ कि आप आगे आइए अपने आपको समाज के लिए कुछ समय दे और अपने हिसाब से आप कोशिश कर सकते है समाज मे अपना रास्ता बनाने के लिए जरूरी नही की आप किसी संगठन में पदस्थापित हो तभी ऐसा होगा मुझे लगता है कि ऐसा नही है जागरूकता फैलाना और समाज के बीच मे बारंबार जाना और उसकी कमियों को उजागर करना महत्वपूर्ण है हो सकता है इसके लिए आप खुद को अपेक्षित महसूस करेंगे लेकिन आपको, अपने आप को प्रोत्साहित रखने के उपाय ढूँढने होंगे उसमें खुद आपको रचनात्मकता ढूंढ़नी पड़ेगी। तभी समाज की भलाई संभव है।

धन्यवाद।
शशि धर कुमार

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धानुक समाज की तरक्की, सामाजिक सुरक्षा के उपाय…

धानुक समाज की तरक्की, सामाजिक सुरक्षा के उपाय…

धानुक समाजधानुक समाज आर्थिक रूप से अन्य कई समाजों के मुकाबले बेहतर है अर्थात धनवान है, ज्ञानी है, दानी है, बुद्धिमान है, चारित्रसम्पन्न है, सुस्वभावी है, शिक्षित है, मिलनसार है, ईमानदार है, मेहनती भी है फिर भी समाज दिन-ब-दिन पिछड़ता जा रहा है अपनी पहचान को, अपने गौरव को खोता जा रहा है क्यों? क्योंकि एकता का आभाव है। समाज में एकता की कमी है। एकता से बढ़कर कोई शक्ति नहीं है। एकता ही समाजोत्थान का आधार है। जो समाज संगठित होगा, एकता के सूत्र में बंधा होगा उसकी प्रगति को कोई रोक नहीं सकता किन्तु जहाँ एकता नहीं है वह समाज ना प्रगति कर सकता है, ना समृद्धि पा सकता है और ना अपने सम्मान को, अपने गौरव को कायम रख सकता है। धानुक समाज इसका जीता-जागता उदहारण है। हम सभी भाई एकसाथ रहते तो है लेकिन क्या हम उन्नत्ति-प्रगति के लिए एक-दूजे का साथ देते है?  नहीं; तो सिर्फ एकसाथ रहने का कोई मतलब नहीं। एकसाथ इस शब्द को कोई अर्थ तभी है जब हम एकसाथ रहे भी और एक-दुसरे का साथ दे भी। ऐसी एकता को ही सही मायने में ‘एकता’ कहा जाता है।

समाज में एकता को कायम रखने के लिए समाजशास्त्रियों ने ‘संगठन’  नामक एक व्यवस्था सूचित की और हर एक समाज ने इस व्यवस्था के महत्त्व को समझते हुए इसे अपनाया। धानुक समाज में भी कई संगठन बने हुए है। समाज के संगठन का पहला काम होता है की समाज के सभी लोगों में अपने जाती के प्रति एक अस्मिता को, स्व-अस्मिता को, गर्व की अनुभूति को जागृत रखें। अपनी संस्कृति को समाज के लोगों की जीवनशैली का एक अंग बनाकर अपनी संस्कृति का संरक्षण-संवर्धन करें। समाज की एकता के लिए यही सबसे पहली जरुरत है, और पहली शर्त भी यही है। अस्मिता और संस्कृति का यही मजबूत धागा समाज को एकता के सूत्र में बांधे रखता है। क्या आज धानुको में अपने “धानुक” होने के प्रति वह अस्मिता, वह गर्व की अनुभूति जागृत है? धानुक संस्कृति के आन-बाण-शान के लिए, संरक्षण-संवर्धन के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगाने का जज्बा बचा है? क्या समाज के युवाओं को अपने “धानुक” होने पर नाज होता है? गर्व अनुभव होता है? यदि नहीं तो यह बात पत्थर की लकीर है की समाज में, समाज के नाम पर एकता बन ही नहीं सकती। बिना इस स्व-अस्मिता के समाज का संगठन बन ही नहीं सकता और जैसे तैसे बन भी जाये या बना भी ले तो ना उस संगठन का समाज पर कोई प्रभाव रहता है और ना ही समाज के लोगों को संगठन से कोई लगाव रहता है । संगठन मात्र एक औपचारिकता भर बन के रह जाता है। ऐसी स्थिति में कोई नेतृत्व, कोई संगठन समाज में एकता कायम नहीं कर सकता। एकता के लिए “स्व-अस्मिता” यही बुनियादी जरुरत है। जैसे विवाह के लिए बुनियादी जरुरत होती है – एक विवाहयोग्य लड़के की और लड़की की। बाकि सब जरूरतें….रिश्तेदार, यार-दोस्त, बाराती, पंडितजी, विवाह के अन्य इंतजाम आदि सब बाद की बात है।

आज समाज के सभी लोगों में खासकर युवाओं से ‘धानुक संस्कृति’ के बारे में उनकी जानकारी जानना चाहे तो वो कुछ बता नहीं पाते है। कई लोगों से व्यक्तिगत बातचीत में जब हमने कहा की, चलो…धानुक संस्कृति के बारे में कोई ऐसी बात बताएं जिसे की समाज के सभी लोग कहे की हां, इस बात पर हम सभी एकमत है। लेकिन कोई सफलता हाथ नहीं लगती क्योंकि ऐसी कोई बात नहीं जिसमे हम सभी एकमत हो, ऐसा नहीं है की धानुको की कोई संस्कृति ही नहीं रही है या जीवनशैली में, दिनचर्या में उनका समावेश ही नहीं रहा है। समाज को दिशा देने का, मार्गदर्शन करने का कार्य एक व्यवस्था के रूप में समाज-गुरुओं को सौपा जाना चाहिए था। ताकि वे एक सुव्यवस्थित प्रणाली, एक व्यवस्था का निर्माण कर उसे सुचारू रूप से चला सके। आज हम में से ज्यादातर लोगों को समाज के इतिहास बारे में कुछ भी पता ही नहीं है।

दुख के साथ कहना पड रहा है की समाज के संगठन इस “धानुक अस्मिता” को समाज के लोगों में जागृत रख पाने में नाकामयाब रहे है। धानुक संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन करने के अपने दायित्व को निभाने में समाज के संगठन असफल रहे है। यह एक कटु सत्य है और इसको स्वीकारना पड़ेगा। समाज के संगठन की इस नाकामयाबी का, लापरवाही का खामियाजा आज भी समाज को भुगतना पड़ रहा है। मित्रों, एकता के लिए आवश्यक यह कार्य कोई महीने दो महीने का अभियान नहीं होता है बल्कि ऐसे एक व्यवस्था के रूप में कार्य करता है जो एक प्रक्रिया की तरह निरंतर चलता रहता है। समाज के गौरव को पुनर्स्थापित करने के लिए, समाज के लोगों की आर्थिक प्रगति हो जिससे की समाज समृद्ध हो इसलिए समाज में एकता होना जरुरी है और समाज में एकता के लिए ऐसी एक स्थाई व्यवस्था का पुनर्निर्माण जरुरी हो गया है।

समाज के संगठन का दूसरा मुख्य काम होता है की समाज के लोगो की आर्थिक प्रगति के लिए संगठन सहयोगी के रूप में कार्य करें। इस कार्य हेतु उचित मार्गदर्शन समय-समय पर करता तो रहे ही बल्कि जहाँ आवश्यक हो वहां हर तरह से सहयोग भी करें। केवल इतना ही नहीं बल्कि समाज के आर्थिक हितों की रक्षा करने का, समाज के लोगों को एवं माता-बहनों को सामाजिक सुरक्षा देने का कार्य भी समाज के संगठन को करना होता है। ऐसा होता है तभी समाज के लोगों को संगठन की जरुरत और महत्त्व है का पता चलता है और तभी वे संगठन से जुड़ते है। तब ही समाज के लोग या समाज, संगठन का कहा मानते है। संगठन के नेतृत्व को, पदाधिकारियों को सही मायने में सम्मान मिलता है, समाज पर उनका अधिकार चलता है। समाज उनका अधिकार स्वीकार करता है। आज देशभर में, शहर, तहसील, जिला स्तर से लेकर राष्ट्रिय स्तर तक संगठन और पदाधिकारी बने हुए है। क्या संगठन और उनके पदाधिकारियों द्वारा यह सब कार्य होते है? यदि नहीं; तो क्यों समाज के लोग संगठन से जुड़ेंगे? क्योंकर पदाधिकारियों की सुनी जाएगी? इसमें पूरा दोष पदाधिकारियों का भी नहीं है। वे तो समाजकार्य करने के नेक जज्बे के साथ संगठन से जुड़ते है, जिम्मेदारियों को उठाने के लिए पदाधिकारी बनते है लेकिन संगठन ने ऐसी कोई व्यवस्था का निर्माण ही नहीं किया है की वह समाज के लिए कोई परिणामकारक कार्य कर सकें। शहर से लेकर प्रदेश स्तर पर संगठन और पदाधिकारी बना दिए गए लेकिन उन्हें कार्य करने के लिए जो एक समुचित व्यवस्था और संसाधनो की आवश्यकता होती है वह तो है ही नहीं, ऐसी व्यवस्था बनाई ही नहीं गई। बिना किसी संसाधनो के पदाधिकारी परिणामकारक कार्य करे भी तो कैसे करे? फिर वह भी क्या करे? जो, जितना कर सकते है करते है और जैसे तैसे अपना कार्यकाल पूरा कर लेते है। संसाधनो और व्यवस्था के आभाव में वह नाममात्र के पदाधिकारी बनकर रह गए है। इसलिए अब यह जरुरी है की एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया जाये जिसमें पदाधिकारी और संगठन समाज के लोगो के काम आ सके। समाज के लोगो के विकास में, उन्नत्ति में अपना योगदान दे सकें।

उपरोक्त बातों के अतिरिक्त और भी कई महत्वपूर्ण बातें है जिसे करने की आवश्यकता है। देशभर में समाज के लिए कार्य करनेवाले अनेक संगठन बने हुए है, इन सभी संगठनों को आपस में सामंजस्य बनाने के लिए एक मंच पर आना अतिआवश्यक है जिससे, सभी में एक बेहतर समन्वय, संपर्क और सुसंवाद बनाकर समाजहित के कार्य व्यापक एवं परिणामकारक बनाये जा सकें। जो सभी संगठनों में व्याप्त अबतक की संगठनात्मक कमियों को दूर करते हुए समाज के लोगो की आर्थिक विकास दर को तेज किया जा सकें, उनके आर्थिक हितों की रक्षा की जा सकें, उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जा सकें और धानुक संस्कृति का संरक्षण-संवर्धन करते हुए समाज के गौरव को पुनर्स्थापित किया जा सकें। आशा है धानुक समाज के गौरव को पुनर्स्थापित करने के लिए सभी धानुक संगठन बिना किसी भेदभाव के समाज की उन्नति और समृधि के लिए कृतसंकल्प है, संकल्पबद्ध है।

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