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शहीद रामफल मंडल जी का जीवन परिचय

अमर शहीद रामफल मंडल जी की जीवन का संक्षिप्त परिचय:

अमर शहीद रामफल मंडल

अमर शहीद रामफल मंडल

पिता – गोखुल मंडल
माता – गरबी मंडल
पत्नी – जगपतिया देवी
जन्म – 6 अगस्त 1924
ग्राम+पोस्ट – मधुरापुर
थाना – बाजपट्टी
जिला – सीतामढ़ी
राज्य – बिहार
आरोप – 24 अगस्त 1942 को बाज़पट्टी चौक पर अंग्रेज सरकार के तत्कालीन सीतामढ़ी अनुमंडल अधिकारी हरदीप नारायण सिंह, पुलिस इंस्पेक्टर राममूर्ति झा, हवलदार श्यामलाल सिंह और चपरासी दरबेशी सिंह को गड़ासा से काटकर हत्या।
कैद – भागलपुर केंद्रीय कारागार
कांड संख्या – 473/42
केस की सुनवाई – माननीय सी आर सैनी न्यायलय भागलपुर
फाँसी की तिथि – दिनांक 23 अगस्त 1943, केंद्रीय कारागार भागलपुर
शादी – 16 वर्ष की उम्र में
शहीद – 19 बर्ष की उम्र में
जेल जीवन – 11 महीना
दिनांक 1 सितंबर 1942 को रामफल मंडल जी की गिरफ्तारी जेल सीतामढ़ी
दिनांक 5 सितंबर 1942 को भागलपुर केंद्रीय कारागार
दिनांक 15 जुलाई को कांग्रेस कमिटी बिहार प्रदेश में रामफल मंडल एवं अन्य के सम्बन्ध में SDO, इंस्पेक्टर एवं अन्य पुलिस कर्मियों की हत्या के आरोपो पर चर्चा।

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सामाजिक व्यक्ति – उसकी पहचान , सक्षमता

सामाजिक व्यक्ति - उसकी पहचान , सक्षमता

सामाजिक व्यक्ति – उसकी पहचान , सक्षमता

अगर कोई व्यक्ति एक जगह या एक संगठन के साथ टिककर नहीं रह सकता है वह समाज को दिशा नहीं दे सकता है क्योंकि वह खुद दिशाहीन है।

 

हमारे यहाँ एक दिक्कत है हम अपने आप को छोड़कर दुसरो को सपोर्ट करने में विश्वास रखते है, जबकि अगर आप अपने आप को जबतक सक्षम नहीं बनाएंगे तब तक आप कैसे किसी की सहायता कर पाएंगे। अगर मैं भटक जाउंगा तो आप क्या करेंगे, सवाल करेंगे या नहीं। यही हम गलत हो जाते है। अगर हम भटक गए तो आप पहले समझिये अच्छी बात है लेकिन आप जबतक मुझसे सवाल नहीं करेंगे तबतक मुझे अपनी गलती का एहसास नहीं होगा। जब आप पूछेंगे तो मैं सोचूंगा ना उससे पहले तक तो मुझे पता है मैं सही हूँ। क्योंकि किसी ने अभी तक सवाल नहीं किया, हम पहले अपने अंदर गलती ढूंढने लगते है। क्योंकि जहाँ आपने यह सोचा की समझने का प्रयत्न करेंगे वही आप उसके प्रति सही सोचने लगे, की वह सही हो सकता है।

 

जबतक आप पूछेंगे नहीं उसको सही गलत का फर्क पता नहीं चलेगा, अगर आप पूछेंगे तो आपको जवाब मिलेगा। हो सकता है वह सही हो लेकिन उसको अभी तक सोचने का मौका ही नहीं मिला। क्योंकि आपने ऊँगली उठाई तो उसको सोचने का मौका मिलेगा। जब सवाल जवाब होता है तो एक भावार्थ निकल कर आता है जिससे पता चलता है क्या सही है क्या गलत, हो सकता है आपने सवाल किया वह गलत है तो सामने वाला आपको बताएगा कि मैं नहीं आप गलत है तो सोचिये एक आदमी अभी तक गलत था जो अब दोनों सही होने जा रहा है।

 

जी हां इसमें कोई दो राय नही है लेकिन जब आप बात करते है तो बहुत सारी बाते पता चलती है। जिस दिन हम किसी भी बात के मंथन से दूर भागना बंद करेंगे उसी दिन हम सही मायने में आगे बढ़ पाएंगे, उससे पहले नहीं क्योंकि हमें किसी बात की दार्शनिक मंथन रुचिकर नहीं लगने से ऐसा करते है जो जाने अनजाने हम अपने आप की सहायता नहीं कर रहे है। सामाजिक काम में कभी कभी आपको नीरसता का सामना करना पड़ सकता है जिससे यह मतलब नहीं की उस बात का समाज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। बस सोचने की बात है जिससे समाज में फैली अलग अलग भ्रांतियों को मिटाया जा सकता है।

 

किसी भी विषय को आप रुचिकर नही बनाएंगे तब तक आप सफल नहीं हो सकते है। रुचिकर तभी होगा जब समाज के अंदर बैठे आखिरी पंक्ति में बैठे लोग उसमे अपनी रूचि ना दिखाई दे।

 

यह अवश्य है कि एक नायक होता है जो उनलोगो में जोश भरता है किसी भी विषय के प्रति और उसका अगुआ होने का सही मायने में अपने आप को साबित करता है।

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वर्तमान बिहार के प्रथम बिहारी शहीद

अमर शहीद रामफल मंडल

अमर शहीद रामफल मंडल

अमर शहीद रामफल मंडल

अमर शहीद रामफल मंडल, आजादी के आन्दोलन में बिहार की भूमिका महत्वपूर्ण रही है, फिर भी वर्तमान बिहार एवं बिहारियों की कुर्वानी को आकलन करने से यह महसूस होता है कि कहीं न कहीं उन बिहारियों की उपेक्षा की गयी है, जिन्होंने अपनी कुर्बानी फांसी को गले लगाकर आजाद भारत के निर्माण में अपना योगदान दिया था। वैसे तो सम्पूर्ण भारत के निवासियों ने अपने-अपने स्तर पर देश की आज़ादी में अपनी अपनी भूमिका निभायी, जिसमें उस समय के तत्कालीन बिहार की भूमिका अग्रणी रही है। उस समय के बिहार का चाहे “देवघर विद्रोह”(1857), “दानापुर विद्रोह”(1857) , “विरसा मुंडा आन्दोलन, खूंटी”(1900), “चंपारण सत्याग्रह” (1918 -19), “अंग्रेजो भारत छोड़ो” एवं “करेंगे या मरेंगे” (1942) आन्दोलन हो, सभी में बिहार ने अग्रणी भूमिका अदा की है। लाठियां और गोलियां खायी है और फांसी को गले लगाया है। गोली से मारे गये शहीदों की संख्या हजारों में है, जबकि फांसी पर लटकाए गए शहीदों की संख्या सैकड़ों में। गोली खाकर शहीद होना घटना/दुर्घटना हो सकती है परन्तु फांसी पर लटकाया जाना वैचारिक शहीद। यही वजह है कि अमर शहीद भगत सिंह, राज गुरु ,सुखदेव, चन्द्रशेखर आज़ाद आदि का नाम बच्चा- बच्चा जानता है। परन्तु बिहारी शहीदों को जो सम्मान मिलना चाहिए था, वह उचित सम्मान आज तक नहीं मिल पाया है।

उदाहरण स्वरुप अमर शहीद रामफल मंडल जी को ही लिया जाये। आप अवगत है कि अमर शहीद रामफल मंडल जी ने बाजपट्टी, सीतामढ़ी में 1942 में अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभायी। आन्दोलन को दबाने के लिए अंग्रेजो द्वारा सीतामढ़ी गोलीकांड हुई बच्चे, बूढ़े और औरत गोलीकांड में मारे गए, विरोध स्वरुप वीर सपूत रामफल मंडल ने गोलीकांड के जबाबदेह अंग्रेजी हुक्मरानों के तत्कालीन एस.डी.ओ. एवं अन्य दो सिपाही को गडासा से कुट्टी-कुट्टी काट दिया था और आजाद भारत/बिहार के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभायी थी।

वर्तमान बिहार के सन्दर्भ में फांसी पर लटकाए गए शहीदों को खंगालना शुरू किया तो एक तथ्य सामने आयी है कि अमर शहीद रामफल मंडल वर्तमान बिहार के 1942 क्रांति के प्रथम बिहारी सपूत है जिन्हें फांसी पर लटकाया गया। कैसे?

12 जून 1857 ई. को पहले-पहल रोहणी (देवघर, जो आज झारखण्ड में है।) में देशी सैनिक विद्रोह हुआ , जिसमें तीन देशी सैनिकों को फांसी दी गयी। (1857 में बिहार, जो उस समय बंगाल प्रोविंस में था, तब के बंगाल प्रोविंस में आज का बंगलादेश ,असम, पश्चिम बंगाल ,उड़ीसा और बिहार शामिल था। आज यह झारखण्ड में है।)

पटना में पेशे से जिल्दसाज पीर अली क्रांतिकारियों को अंग्रेजों की गतिविधियों का गुप्त संदेश देते थे। पटना के तत्कालीन कमिश्नर विलियम टेलर ने खान और उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया। अंग्रेजी हुकूमत ने 7 जुलाई, 1857 को पीर अली के साथ घासिता, खलीफा, गुलाम अब्बास, नंदू लाल उर्फ सिपाही, जुम्मन, मदुवा, काजिल खान, रमजानी, पीर बख्श, वाहिद अली, गुलाम अली, महमूद अकबर और असरार अली को बीच सड़क पर फांसी पर लटका दिया था। राजधानी पटना के गांधी मैदान के निकट शहीद पीर अली चिल्ड्रेन पार्क उन्ही के नाम पर है। अमर शहीद पीर अली साहब का जन्म संभवतः उत्तरप्रदेश ,आजमगढ़ हुआ था।

7 जनवरी 1900 को तीन सौ मुंडाओ ने तीर-धनुष, भाले से लैस होकर खूटी थाना (आज का झारखण्ड) पर हमला कर एक सिपाही को को मार दिया ,बिरसा मुंडा को पकड़ लिया गया ,लगभग 350 लोंगों पर मुक़दमा चला, तीन को फांसी दी गयी।

खुदीराम बोस को मौजूदा राज्य बिहार के मुजफ्फरपुर शहर में किए गए एक बम हमले का दोषी पाया गया और उन्हें मौत की सजा सुनाई गई, मिदनापुर (पश्चिम बंगाल) में 1889 में पैदा हुए बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सबसे कम उम्र के क्रांतिकारियों में शामिल थे। भारतीय आजादी की लड़ाई के सबसे युवा शहीदों में एक खुदीराम बोस को 1908 में फांसी दे दी गई। खुदीराम को जब फांसी पर चढ़ाया गया, तो उनकी उम्र सिर्फ साढ़े 18 साल थी। 11 अगस्त, 1908 को फांसी वाले दिन पूरे कोलकाता में लोगों का हुजूम लग गया। उस वक्त अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे भारतीय युवाओं को फांसी देना कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी, लेकिन इस उम्र के एक क्रांतिकारी के सामने आने पर बोस को काफी सहानुभूति मिली।

अमर शहीद जुब्बा सहनी को मुजफ्फरपुर थाना को घेरकर आग लगाने एवं सिपाहियों को आग में फेकने के आरोप में 11 मार्च 1944 को फांसी दी गयी।

इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि 1942 क्रांति के बाद अमर शहीद रामफल मंडल वर्तमान बिहार के पहले शहीद हैं जिन्हें फांसी दी गयी।

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