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धानुक समाज में एकता

धानुक समाज में एकताधानुक समाज में एकता – ज़िन्दगी का नाम है चलना और हमने चलते रहने की कसम खाई है जब तक हमारे समाज को उचित स्थान नहीं मिल जाता है। हमारे समाज में कुछ लोग ऐसे भी है जो हमारे अंदर फुट डालना चाहते है आप सब उन महानुभावों को पहचाने और उनकी बातो को गौर से सुने और संयम तथा धैर्य के साथ अपना जवाब रखे। क्योंकि आपके विरोधी यही चाहते है। ऐसे लोग समाज के लिए कम और अपने लिए ज्यादा सोचते है और हमेशा अपनी जय जयकार करवाना चाहते है। हम यहाँ अपनी एकता और सम्मान की बात करने आये है और हम वही करेंगे। सबकी अपनी ईमानदारी होती है किसी कार्य के प्रति। क्या पता मुखिया बन के कोई व्यक्ति सही में समाज में कुछ योगदान कर सके। कोई भी गलत और सही नहीं होता ज़िन्दगी भर लेकिन हाँ कुछ समय के लिए आदमी ईंमानदार तो हो ही सकता है। नेहरू जी ने कहा था एक गलती आपको सारा ज़िन्दगी बदनाम रख सकता है और एक सही कदम आपको सारी ज़िन्दगी की बदनामियों से छुटकारा दिला सकता है।

 

हमे अपनी ज़मीन तैयार करनी है, और वह ज़मीन पर करनी होगी। हम सामाजिक तौर पर बायकॉट हुए है उसे ऊपर करना है। आप सोचिये कुछ बुराई है तो अच्छाई भी है कुछ जगह हमे उसको देखना चाहिए ना की गलत पक्ष को। तो हमे अच्छे लोगो को पहचानना है और उन्हें हमारे इस उद्देश्य में साथ लेना है और उन्हें धानुक समझते हुए उन्हें अपने समाज को आगे लाने के लिए मजबूर करना है हमने बहुत खोया है लेकिन कुछ पाया अवश्य है अपने समाज से। और हमारा यह सामाजिक सरोकार है की हम अपने भाई बंधू जो समाज की तीसरी जमात में आते है उनके लिए कुछ करे और उन्हें उत्साहित करे शिक्षा की ओर उन्हें आगे बढ़ाने में मदद करने की कोशिश करे।उनकी उत्साह कही खो गयी है जिसकी वजह से वे आगे आ नहीं पा रहे है, अपने आप को उपेक्षित समझ रहे है ज़िन्दगी में बहुत सारी चीजे होती रहती है, लेकिन हम हमेशा कोशिश करते है अच्छी बात याद रखने की।

 

हमे सोचना है की हम कैसे आगे बढे और मजबूती से बढे। ज़िन्दगी इतनी बरी नहीं की आधी ज़िन्दगी सोच के गुजार दिए और आधी ज़िन्दगी इस सोच में बांकियों ने क्या किया। हमारे लिए यही एक सोच हमे अपने समाज को आगे ले जाने में सक्षम है हमे अपने आगे पीछे लोगो को ज़मीन पर जागरूक करना होगा हम यहाँ आपस में विचार साझा करते है ताकि हम आपस में अपने साथ वालो को समझा सके। हमे पहले अपनी जागरूकता बढ़ानी चाहिए फिर हम आगे पास कर पाएंगे इन बातो को। तो हमे अपने आप को मजबूत करना है संगठन तब मजबूत होगा, जब हम उन्हें संख्या बल देंगे शिकायत करने से कुछ नहीं होगा हमे आगे आना होना होगा ताकि हम समाज को समझा सके। हम आपस में उलझे रहेंगे तो कैसे बढ़ेंगे, तो हक़ीक़त यह है की समाज जागरूक नहीं है अपने अधिकारो को लेकर। उन्हें इस बात के लिए जागरूक करे हम आपस में इस बात के लिए एकमत नहीं है की हमारी गोलबंदी जरुरी है हम पहले अपने हिस्से की बात नहीं करते है और दूसरे के हिस्से की बात करने में लग जाते है। कृष्ण ने कहा था आप कर्म करे फल की चिंता ना करे। बस हमे अपने हिस्से का कर्म करना है और करते चले जाना है हमे कर्म करने से कोई नहीं रोक सकता है और हम कर्म कौन सा करते है यह हम पर निर्भर करता है और इसके लिए पूर्णतया हमी ज़िम्मेदार होते है कोई दूसरा नहीं हमे अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी का एहसास होना चाहिए तो हमे ऐसे लोगो की जरुरत है और हमे पहचानने होंगे। इन लोगो को जो ज़मीन पर काम कर रहे है आर्थिक मजबूती के बिना समाज को या एक संगठन को आगे बढ़ाना मुमकिन नहीं है। सुनी सुनाई बातो पर हम कभी भी विश्वास कर लेते है हमारी दिक्कत यही है हम अपने आप को कुछ ज्यादा समझदार समझ लेते है पहले लोगो पर विश्वास करना सीखे लोगो पर भरोसा करे तभी समाज का भला होगा।आधी जानकारी से आप समाज का भला नहीं कर सकते। जो अपने आप को परिपूर्ण समझते है पहले अपने अंदर सिखने की ललक पैदा करे। तभी आगे बढ़ पाएंगे। समस्या यही है हम आरोप लगा देते है वह भी सुनी सुनाई बातो पर विश्वास करके, सामने वाला भी तो झूठ बोल सकता है। हर कोई समझदार है थोड़ा समझदारी से काम ले आरोप लगा देना बहुत आसान है, लेकिन साबित करना आसान नहीं होता। अपने बारे में सोचे की आपने क्या किया है समाज के लिए अभी तक। ऊँगली सभी उठाते है लेकिन भूल जाते है 4 तो हमारे तरफ ही उठ रही है। हमे हर एक माध्यम और हर एक व्यक्ति की जरुरत है समाज के सांगठनिक सेवा के लिए।

 

हम बाते तो बड़ी बड़ी करते है और अपने खून के रिश्ते पर तक भरोसा नहीं कर पाते इसीलिए पिछड़े है और कुछ लोग हमारे समाज के पिछड़ेपन का फायदा उठाना चाहते है। हमे आपस का विश्वास बढ़ाना है। पहले समाज को कुछ देने का प्रयास करे फिर सोचे के अब क्या करना है। अकेले ही बहुत कुछ किया जा सकता है अपने आस पास जागरूकता फैलाने के लिए, उसमे कोई पैसे की जरुरत नहीं और ना ही किसी संगठन की। हमारी अपनी सोच काफी होती है हमें गलत और सही साबित करने के लिए, दुसरे क्या कर रहे है हमे क्या फर्क परता है हम क्या कर रहा है इससे फर्क पड़ता है। ज़िन्दगी है, कुछ ना कुछ तो होगा ही अगर नहीं होगा तो आपको पता कैसे चलेगा अपनी मजबूती का, कुछ लोग नकारात्मक विचार को ले के आगे बढ़ना चाहते है बढे उनका भी स्वागत है लेकिन आज भी धानुक 90% गाँवो में रहता है क्या उनकी मज़बूरी कभी शहर में रहने वाला व्यक्ति समझ पायेगा शायद कभी नहीं, अपने अपने गाँव में ध्यान दे लोगो को बताये की क्यों हमारा एकजुट होना जरुरी है, यह नहीं की हम सिर्फ ST में शामिल होना चाहते है। हमारा ध्यान अपने समाज के लोगो की एकजुटता पर होनी चाहिए। इन चीजो के लिए किसी पैसे और संगठन की जरूरत नहीं है। हमे अपना वैचारिक विस्तार बढ़ाना चाहिए कुछ लोग आएंगे हमारे रास्ते में जो नकारात्मक सोच को रखेंगे लेकिन आपलोगो को इन सबको भूल कर आगे बढ़ते रहना है। चिल्लाने वाले चिल्ला ही रहे है 65 सालो से कुछ हुआ अभी तक नहीं, आगे भी नहीं होगा इन जैसे लोगों से, क्योंकी ऐसे लोग आपके रुतवे से नहीं डरते है वे आपकी समझ से डरते है क्योंकी उन्हें लगता है उनकी दुकान अब बंद होने वाली है। आप सब समझदार है। आप सब अपने अपने गाँव में वैचारिक सम्बन्ध बढ़ाये लोगो को जोड़े लोगो को समझाए की क्यों एकजुटता जरुरी है, यही सोचना है हमे। आपकी सोच ही आपको बड़ा बनाती है आप अगर माफ़ करने की क्षमता रखते है तो आपसे बड़ा कोई नहीं। हम आम आदमी है हमसे भी गलतियां हुई है और होती रहेंगी तो क्या लोग हमारा बहिष्कार करना शुरू कर देंगे तो हम कैसे सीखेंगे।

 

आपके कर्म आपको सार्थक साबित करते है, हमे अपने कर्म पर विश्वास करना है और हमारा कर्म कैसा हो यह हम निश्चय करते है कोई और नहीं। हमे सामंजस्य बिठाना होगा इन दो विरोधाभासी शब्दों में, क्योंकि हम राजनीती को नकार नहीं सकते। हमारा मानना है की आखिरकार राजनीती ही यह फैसला हमे देने वाली है, हमे क्षुद्र राजनीती करने वालो से दूर रहने की कोशिश करनी होगी। जो लोग यह कहते है सामाजिक कार्य और राजनीती एक साथ ईमानदारी से नहीं चल सकती है तो उन्हें कर्पूरी जी के जीवन पर नज़र जरूर डालनी चाहिए की कैसे उन्होंने राजनीती और सामाजिक न्याय में भी सामंजस्य बिठाया था। यह हमारे अपने सामर्थ्य पर निर्भर करता है। ऐसे भी लोग है और हुए भी समाज में की उन्होंने अपनी तरफ से सामंजस्य बिठाया है हमे एकता की जरुरत है। सबकी अपनी सोच होती है कोई राजनीती से समाज की सेवा करना चाहते है और कुछ लोग करते भी होंगे।

 

शोषण तो हुआ ही है 65 सालो से लेकिन हम कहाँ है यह सोचने वाली बात है, कुछ गलतियां हुई तभी हम यहाँ है, हमे उसी को सुधारना है। जब तक ज़िन्दगी है तब तक समस्या है जरुरत है उससे निदान पाने के लिए सकारात्मक सोच की जरुरत है ना की नकारात्मक सोच की। क्या कोसने से सब ठीक हो जायेगा कभी नहीं 90% धानुक अभी भी गाँव में रहती है, उनके लिए कोई नहीं सोच रहा है, यही सोच की आवश्यकता है ना की एक दूसरे के ऊपर दोसारोपन वाली सोच का। क्रांति एक दिन में नहीं होती है उसके लिए समय चाहिए और हमारे समाज को क्रांति की आवयश्कता है जो समाज में एकता, एकजुटता और शिक्षा का प्रचार प्रसार कर सके और उसके बारे में लोगो को उसके अच्छे बुरे दोनों पहलुओं को रख सके।

 

हमारी एकता ही हमारा जवाब होना चाहिए इसके लिए काम किया जाये गाँव गाँव में, तभी हम किसी भी तरह की प्रगति के बारे में सोच सकते है। लोगो की सोच हमेशा बोलती है आप कितना भी कुछ कर ले छुपाने की, एक दिन आपकी सोच सबको दिखेगी, हमारी सोच क्या है समाज के प्रति यह महत्वपूर्ण है। हमारे मिशन का तीन लक्ष्य होना चाहिए हमारी एकता, हमारी जाग्रति, हमारी शिक्षा। हर आदमी की सोच अचानक से नहीं बदली जा सकती है लेकिन कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती है, हम सब को भी नकारत्मक लोगों का सामना कर पर सकता है लेकिन घबराना नहीं है। हमे पॉजिटिव रहना है लोगो को समझाना है लोगो में धानुक एकता की बात करनी है।

 

हमे पॉजिटिव रहना चाहिए, कोई फर्क नहीं परता है हम कहाँ से है क्या करते है, हमे सिर्फ इस बात को याद रखना है की हम क्यों एकत्रित हो, ये ज्यादा महत्वपूर्ण है और रहना भी चाहिए। जब तक हम अपना लक्ष्य नहीं पा लेते है।

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धानुक समाज का आंदोलन

धानुक समाज का आंदोलनधानुक समाज का आंदोलन – सभी धानुक समाज के समाजसेवियों को हार्दिक बधाई कल सम्पन्न हुए एक दिवसीय महासम्मेलन के लिए। जो आ पाये उनका हार्दिक अभिनन्दन, जो नहीं आ पाये किसी कारणवश उनको आगे आने वाले आंदोलन के लिए हार्दिक शुभकामना।

 

कल कार्यकर्ताओं द्वारा उठाये गए मुद्दों को लेकर समाज के सभी समाजसेवियों की एक मत से यही राय रही की इस आंदोलन को हमे अपने समाज के निचले तबके तक ले जाना है जो इन सब बातो से वंचित है। हमे समाज के उस तीसरी जमात के लोगो को भी इस मुहीम का हिस्सा बनाना है जो कही छूट रहे है अपने सामाजिक सरकारो से। उनके उत्थान के लिये समाज के सभी बुद्धिजीवियों से आग्रह किया गया की आप सभी अपनी अपनी तरफ से कोशिश करे उन्हें आगे लाने की और उन्हें समाज के मुख्यधारा में शामिल होने के लिए प्रेरित करे। धानुक समाज का पिछड़ापन ही उसकी बड़ी समस्या रही है लेकिन इसका मतलब यह नही है की हम अपने समाज को उसके हाल पर छोड़ कर आगे बढ़ जाये। जब तक हमारे समाज का हर एक व्यक्ति इस बात को नही समझ लेता तब तक हमे यह लड़ाई जारी रखनी है। हम आज तक ठगे गए है और हमे अपने समाज के अंदर बैठे विभीषण को पहचानना होगा और उन्हें अपने इस कार्य में बाधा पहुँचाने से रोकना होगा ताकि हम अपने समाज को आगे की पंक्ति में खड़ा देख पाये। हमारा उदेश्य ही यही है की हम अपने समाज में फैली भांति भांति के भ्रांतियों के वावजूद आगे बढ़े और उन्हें इनसे निजात दिला पाये।

 

पहले कब क्या हुआ किसने क्या किया हमे उनसे कोई सरोकार नहीं अगर किसी ने समाज के प्रति थोड़ा सा भी योगदान दिया है तो हमे उसके योगदान को भूलना भी नहीं चाहिए। हमे इन सब को भूल कर आगे बढ़ना है और हमें अपने समाज को आगे लाने के लिए जो भी करना पड़े करेंगे। ज़िन्दगी में हमेशा सब कुछ सही नहीं होता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं की हम आगे को सोचना बंद कर दे और हम व्यक्तिगत तौर पर करते भी नही है तो जब व्यक्तिगत तौर पर जिस बात को आगे नहीं बढ़ाते है उसे सामाजिक तौर पर क्यों बढ़ाये।

 

तो आप सभी महानुभावों से आग्रह है की आप अपने समाज के निचले तबके की ओर देखना शुरू करे और उन्हें समाज की मुख्य धारा में जोड़ने का प्रयास करे हम जरूर कामयाब होंगे। रही बात हमारी जाती को बिहार में ST में शामिल करने की वो हमारा हक़ है जो हम लेकर रहेंगे।
जय धानुक जय भारत।

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बिहार में धानुक समाज का ST की मांग

क्या बिहार में धानुक समाज का ST की मांग नाजायज़ है?क्या बिहार में धानुक समाज का ST की मांग नाजायज़ है?

सवाल बहुत सारे है जैसे
ST में शामिल करने की वजह?
समाज में और कितना गिरेंगे?
ST में आने के बाद क्या आप कभी जनरल में आ पाएंगे?
अपने को और गिराने से अच्छा है अपने जानने वालो को मुख्यधारा में जोड़ा जाये?
मुझे कभी आरक्षण की जरुरत नहीं पड़ी?
विकलांग को अगर ज्यादा सुविधा मिलती है तो क्या हम अपने आप को अपंग बना ले?
SC/ST के हालात देखे आपको नहीं लगता है अपने आप को वही धकेल देना समाज के प्रति नाइंसाफी नहीं है?
क्या इससे समस्या का समाधान हो जायेगा?
क्या यह सिर्फ धानुक समाज की समस्या है?
हमसे अच्छा तो कुर्मी और यादव है जो पिछड़े में होते हुए भी हमारी जगह ले गए?

 

तो इन सारे सवालो का जवाब अलग अलग तो दिया जा सकता है लेकिन इन ज्वलंत सवालो का जवाब इस तरह से दिया जा सकता है।

कुछ तो लोग कहेंगे लोगो का काम है कहना। अगर ST में आने से कुछ का भला होता है तो क्यों नहीं, वैसे भी वह दिन दूर नहीं जब आरक्षण ही नहीं रहेगा। ये कोरी सच्चाई है जो लोग आज बिना आरक्षण के आगे बढ़ जाते है उनके लिए आरक्षण नहीं होता। बिना आरक्षण के बढ़ने वाले आज भी जनरल में जगह पाते है। कभी आपने सोचा है बिहार को छोड़कर सारे राज्यों में धानुक SC में  क्यों आते है? क्या आपने सोचा हैआपको IIT में एडमिशन के लिए उदाहरण के तौर पर 500 नंबर लाने होते है लेकिन UP और बांकी राज्यों के धानुक को 450 में क्यों एडमिशन मिल जाता है। ये फर्क है जरा गौर फरमाइयेगा आप अपने किसी UP के दोस्त को बोल के देखिये की मैं धानुक हूँ वह आपको SC/ST ही समझेगा ना की OBC। इसका मतलब है की आप मानसिकता में पहले से ही गिरे हुए ही है, आपको और गिराने की क्या आवश्यकता है। आप कहते है आपको कभी आरक्षण की आवश्यकता नहीं पड़ी आपको धन्यवाद देना चाहिए अपने माता पिता को जिन्होंने आपको इस हद तक संवारा की आपको आरक्षण की जरुरत नहीं पड़ी। लेकिन क्या आपको एहसास है की यह सुविधा कितनो को मिल पाती है क्या हमे उसी सुविधा को निचले तबके तक नहीं ले जाना चाहिए? जैसा हम जानते है यह सिर्फ बिहार के धानुको में ये ग़लतफ़हमी है की हम ऊपर है क्योंकि बांकी राज्यों में तो आप SC/ST है। आप बराबरी की बात क्यों नहीं करते की बांकी जगह जब सरकार ने SC में रखा है तो यहाँ इस समाज को उस हक़ से वंचित क्यों रखा गया। क्या उसका फायदा निचे तबके के लोगो को नहीं मिलना चाहिए जो वाकई में इसके हक़दार है?

 

जिन्होंने इस दंश को झेला है उन्हें अंदाज़ा है की कास बिहारी धानुक भी SC में होता तो मैं भी आज एक अच्छे जगह होते क्योंकि वह जो एक नंबर से पीछे रह जाता है और उससे 5 नंबर कम लाने वाला दूसरे राज्य का धानुक का एडमिशन हो जाता है या उसको नौकरी मिल जाती है। ऐसे को तो मौका मिलेगा ताकि वह अपने आप को  और अपने परिवार को देख पायेगा और अपने परिवार को वर्षो से झेलता आ रहा संताप से छुटकारा करा पायेगा। आप कहते है जो एक नंबर से पिछड़ जाता है तो उसका नंबर बढ़ाये, हम कहते है पैसा ही नहीं उसके पास तो आगे की पढाई कैसे करेगा और कितनी बार वह एडमिशन के लिए पेपर देगा और कितनी बार वह नौकरी के लिए फॉर्म भरेगा और कैसे भरेगा। OBC का फॉर्म फीस और जनरल का फॉर्म फीस में 50 रुपैये का अंतर होता है और जनरल और SC/ST के फॉर्म फीस का अंतर 300 का होता है। आप 5 बार UPSC बैठ सकते है और SC/ST अनगिनत बार भाग ले सकता है। आपको नहीं लगता बांकी राज्यों के वनिस्पत बिहार के धानुको के साथ पक्षपात है। आप कहते है आप सिर्फ अपने बारे में सोच रहा हूँ। क्या आप यह कह कर अपने आप को उसी सवाल के घेरे में नहीं ले रहे है?

 

आप बांकी समाज के बारे में सोच रहे है अच्छी बात है क्यों, क्योंकि आपके पास जीने लायक पैसा है बांकियों के बारे में सोचिये जो आज भी आज़ादी के 65 साल बाद भी निचले तबके में कही गुलामी की जंजीरो में कही जी रहा है। इस आंदोलन से कम से कम हम एक प्लेटफॉर्म पर तो आये वैसे ही जैसे सभी जातिओं का अपना संगठन है अपनी सोच है तो इस समाज का भी अपना संगठन क्यों ना हो।

 

आपको फर्क नहीं परता एक बार 1 नंबर से पीछे रह गए कोई नहीं एक बार और कोशिश कर लेंगे लेकिन उनका सोचिये जो किसी तरह एक बार फॉर्म भरते है, और दूसरी बार वह भर नहीं सकता क्योंकि उसके पास पैसे नहीं है। ये गर्त में जाने की कोइ बात नहीं है आप अपने समाज को बांकी राज्यों के तुलना करके देखिये की बिहारी धानुक क्यों पीछे रह गया। सरकार अगर किसी जाती को एक केटेगरी में रखा है तो हर एक राज्य के लोगों को रखना चाहिए ना यह पक्षपात क्यों। लेकिन हर कोई अपनी जाती को देख रहा है चाहे वह आज की राजनितिक पार्टियां ही क्यों ना हो, क्या ये गिनती भूल जाते है चुनाव में।

 

आप जीवन भर जाती प्रमाण पत्र के लिए एड़ियां रगड़ते रहिये, कोई नहीं पूछेगा। मर जाइये, राजनितिक पार्टियां फ़ौरन आपकी जाती सत्यापित कर देगी। और हम आपसे कहते है हम जिस भी जाती में आते है उन जातियों को क्यों आज भी एक मामूली प्रमाण पत्र के लिए भी राजनितिक रसूख़ की जरुरत पड़ती है।

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