धानुक समाज का पिछड़ापन -धानुक समाज कई तरह की आंतरिक भ्रांतियों से भरा हुआ एक पिछड़ा समाज है जो हमेशा से उहापोह की स्तिथि में रहा। इसके पीछे भी एक बड़ी वजह रही जो इस समाज को असमंजस की स्तिथि में रखने के लिए काफी थी। जैसा हमने पिछले लेख में दर्शाया था यह समाज अपने ऐतिहासिक विरासत जो ना तो इसे ऊपरी जाती के साथ रख पाया ना ही नीची जाती के साथ। सबसे बड़ा पिछड़ेपन का कारण इस जाती में कोई भी ऊपरी स्तर पर राजनितिक नेतृत्व का ना होना। आज भी अगर नजर दौड़ाया जाया तो पुरे भारत में 70 लाख की जनसंख्या होने के बावजूद कोई भी राजनितिक नेतृत्व नहीं दिख पड़ता।
ऊपरी स्तर पर राजनितिक नेतृत्व का नहीं होने की वजह से इस जाती का हमेशा से दोहन होता रहा। चाहे वह जगन्नाथ मिश्र जी की सरकार में हो या लालू प्रसाद जी की सरकार में या अभी नितीश जी की सरकार की बात हो। नितीश जी का 2015 विधानसभा चुनाव के ऐन पहले नोनिया जाती को ST में शामिल करना जैसे दुखती रग पे नमक रखने जैसा था। वर्तमान सरकार ने इस जाती के भीतर भी कई तरह के भितरघात किये है जैसे कुर्मी जाती को अलग से महत्व देना, पटेल और वर्मा को अलग तरह से महत्व देना एक उदहारण है। धानुक जाती जो बिहार की अग्रणी पिछड़ी जाती में से आती है उन्होंने फैसला किया है की अब नहीं अब हम संगठित हो के रहेंगे और सरकार को दिखा के रहेंगे की अब हम ही अपने समाज के बारे में सोचेंगे और कोई नहीं। हमने बहुत दुसरो पर भरोसा किया जिसकी वजह से आज तक हम ठगे गए है।
दूसरी सबसे बड़ी वजह रही अशिक्षा, जो इस समाज में बहुत बड़ी है। इस समाज में अशिक्षा की वजह उसका स्कूल ड्राप भी है, जो प्रतिशत में बहुत है। अशिक्षा हमारे समाज के लिए एक अभिशाप है। जिसके बारे में हमे संजीदगी से सोचना होगा। अशिक्षा की एक बड़ी वजह है आर्थिक तंगी, जिसके बारे में हमे सामाजिक तौर पर सोचना होगा।
कहते है जिस समाज का युवा और शिक्षित वर्ग जाग जाए उस समुदाय का भला होने में देर नहीं लगती। और आज बिहार का धानुक समाज का युवा वर्ग चाहे जहाँ भी पुरे भारत में वो जाग गया है, और अब उसे दबाया नहीं जा सकता है।
उठो जागो युवा वर्ग दिखा दो जो भी अब तक सहा है हमारे वर्ग ने अब हम उसे सहने नहीं देंगे।अगर सरकार इस बारे में नहीं सोचेगी तो भी अब हम जागरूक होकर इस समुदाय को वो स्थान दिलाएंगे जिसकी वह हक़दार है।
Recent Comments