मैं हमेशा लिखता रहा हूँ की बिना राजनीती के हम अपने समाज के उत्थान के लिए किसी भी तरह का नीति नहीं बना सकते है और क्यों हमें अपने समाज के राजनेताओं से दूर रहना चाहिए इसके पीछे कई कारण है। हमारी जाती के लोग अपने जाति आधारित नेताओं के साथ उठने में काफी गर्व महसूस करते है। उन्हें लगता है कभी तो उनका भला हो जायेगा लेकिन ऐसा होता नहीं है बहुजन और पिछड़ों के नेताओं में इतनी ताक़त नहीं होती है की वे किसी भी बातो को बहुजनों की हितों की बातें वे खुलकर रख सके ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि उन्हें लगता है उनकी टिकट छीन जाएगी और यही वे सबसे बड़ी गलती कर जाते है। क्योंकि टिकट देने वालों को लगता है जो अपने समाज के लोगो के हितों की बातों को नहीं उठा सकता है वह हमारे लिए किसी भी विरोध में साथ कैसे खड़ा हो सकता है आपके विरोध करने की क्षमता का वहां से पता चलता है। हर बात में हमारे नेताओं की जी-हुजूरी जग जाहिर है वे अपने नेताओं के बारे में सार्वजनिक तौर पर लिखने और बोलने का प्रयास करते रहते है लेकिन उनके नेता इन्हे छोटे से छुटभैया नेता समझ कर जब जरुरत हो मंचासीन कर लेते है जब जरुरत ना हो मंच तो क्या उन्हें दूर दूर भी फटकने नहीं देते है। लेकिन इनकी मोटी बुद्धि में यह बात कभी नहीं आनी है और ना ही आएगी।
इसीलिए मैं अपने सभी युवा साथियों से आग्रह करता हूँ की वे अपना अस्तित्व ढूंढने का प्रयास करे चाहे जहाँ भी मिले वही जाइये लेकिन इज़्ज़त के साथ बोलने और सुनने वाली जगह चुनिए और मुखर होकर बोलिये जब दूसरे नेता अपने जातिहित की बात करते एक बार भी नहीं सोचते है तो आप क्यों सोचे। आप अपने समाज के वोटो को यूं ही नीलाम मत करिये सबसे कहिये अपने विवेकानुसार अपने वोट का प्रयोग करे। क्योंकि आज जिसके लिए वोट के जुगाड़ में आप खड़े है जीतते ही वे कहेंगे आप कौन क्योंकि उनके बच्चे पढ़ रहे है विदेश में और आपके बच्चों को विद्यालय भी नसीब नहीं कभी शिक्षक जनगणना कराने में व्यस्त कर दिए जाते है तो कभी बाढ़ या कोरोना के कारण विद्यालय को कैंप बना दिया जाता है कभी चुनाव में भेज दिया जाता है तो कभी गर्मी छुट्टी फिर कभी ठंढी की छुट्टी या फिर बाढ़ की छुट्टी, आपके बच्चो के भविष्य में पढ़ना नहीं लिखा हो वे ऐसा हर प्रकार से सोचने में लगे रहते है और गलती से हमारे जाति के नेता विधायक बन भी जाए तो उन्हें लगता है वे देश के सर्वोच्च स्थान पर पहुँच गए है फिर उनकी फितरत जाग जाती है पहले वे आपको सुबह शाम आपका हाल चाल जानने को फ़ोन करते थे और अब आप फ़ोन करे तो वे हमेशा व्यस्त नज़र आते है और गलती से उनके दरबार किसी से कहलवा भी भेजा की आपने याद किया है तो वे निर्लज्जता से कहते है आप कौन आपको तो पहचानते ही नहीं है। जब मंच पर खड़े होंगे तो बड़ी बड़ी बातें और लेकिन जाति के नाम पर एक काम इनसे नहीं होता है तब वह प्रोटोकॉल के खिलाफ हो जाता है और तब वे सभी जातियों और सभी धर्मो के राजनेता हो जाते है।
जब इनके पास कुछ नहीं होता है तो यही जाति के निम्न लोग उनके लिए हर संभव मदद कर इन्हें राजनीती में आगे बढाने का काम करते है अपने पॉकेट से अपने बचत के पैसे से इनके लिए प्रचार कर इन्हें आगे बढाने का हर संभव प्रयास करते है लेकिन जीतने के बाद ना तो इनके अन्दर शर्म बची होती है और ना ही हया नाम की कोई ऐसी चीज जिनके पीछे ये छिप पाये। तब ये लोग सिर्फ अपने और अपने चार परिवार के बारे में सोचते है की कैसे आगे की तीन पीढी को सही किया जाय लेकिन इन्हें यह नहीं पता होता है पैसा ऐसा चीज है जो जिस प्रकार कमाया जाता है उसी प्रकार चला जाता है भले आपके जीते जी लोग आपके मूंह पर कुछ ना बोलेन लेकिन आपके मरने के बाद आपकी बातें अवश्य होंगी की आपने विधायक या सांसद बनने से पहले और बाद में क्या और किसके साथ कैसा बर्ताव किया था और यकीन मानिए वही पूंजी है वही आपकी पहचान साबित करेगी और लोग यह भी कहने से नहीं चुकेंगे की आपने अपनी जाति की भावनाओं को सीढी बनाकार अपना और अपने परिवार की भलाई सोची तब आपकी आने वाली पीढी को यह अंदाजा अवश्य लगेगा की आपने अपने जीवन में क्या कमाया है और क्या देकर जा रहे है। पैसा बचाने के लिए भी पढ़ाई आवश्यक है यह हमेशा समझने की जरुरत है अगर आपकी अगली पीढी अपने पैसे के दम पर सोच रही है कुछ भी कर लेंगे खत्म नहीं होने वाला है तो यह दुनिया का सबसे बड़ा झूठ है।
हमें ऐसे नेताओं को पहचानने की आवश्यकता है और क्यों मैं ऐसे नेताओं से दूर रहने की सलाह देता हूँ:
१) जीतने से पहले आपके साथ हमेशा संपर्क में रहते है और जीतने के बाद आपसे बात भी नहीं करते है और आपसे दुरी बना कर रखते है।
२) जीतने से पहले समाज के साथ उठना बैठना करते है बाद में वे सभी जातियों के एकमात्र सर्वमान्य नेता कहलाने लग जाते है।
३) जीतने से पहले समाज के सम्मेलनों में जाते है लेकिन जीतने के बाद वे नहीं जाते है।
४) जीतने से पहले समाज के हर शिक्षित व्यक्ति को साथ लेकर चलने की बात करते है और जीतने के बाद उन्हें नहीं पता होता है की हमारे समाज के शिक्षित लोग कहाँ कहाँ पर है।
५) जीतने से पहले समाज का आखिरी पायदान पर बैठे व्यक्ति के बीच जाने में कोई समस्या नहीं है लेकिन जीतने के बाद तो रिश्तेदारों तक से दुरी बना लेते है।
६) जीतने से पहले आपके हर व्हात्सप्प सन्देश कर उत्तर देंगे जीतने के बाद वे व्यस्त हो जाते है और उनके पास समय का आभाव हो जाता है।
७) जीतने से पहले हर ठेके पर अपने लोगो के साथ चलते है लेकिन जीतने के बाद अपने लोगो को नहीं देकर दूसरों को देते है क्यों बांकी आप समझदार है।
८) जीतने से पहले उन्हें शिक्षा, बेरोजगारी और समाज में फैले कुव्यवस्था के ऊपर बोलना क्रांतिकारी लगता है लेकिन जीतने के बाद यह अपने नेताओं के खिलाफ जाना लगता है।
९) जीतने से पहले आरक्षण व्यवस्था से जाति की समाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार संभव है लेकिन जीतने के बाद इसपर बोलना उनके पार्टी लाइन के खिलाफ होगा।
१०) जीतने से पहले समाज की हर समस्या उनकी समस्या है लेकिन जीतने के बाद समाज के हर व्यक्ति की समस्या उनकी अपनी नहीं हो सकती है।
आप उपरोक्त सभी बातों पर अपने नेताओं को परखिये फिर बताइए की क्या आपका नेता उपरोक्त बातों पर खड़ा उतरता है या कही ना कही वे भी इसी दस मुख्य बिन्दुओं पर अटक जा रहे है तो आपको सोचने की आवश्यकता है। आज आपका लगता होगा अगली बार इसे नहीं जिताएंगे और अगर उनका अपनी पार्टी से पत्ता साफ़ भी हो गया तो वे दूसरी पार्टी में जाकर अपने लिए टिकट हासिल कर लेंगे क्योंकि सब कुछ पैसे का खेल हो गया है और आपके पास आयेंगे और रोना रोयेंगे की पहली बार जीतने की वजह से उन्हें कुछ भी पता नहीं चला इस बार जिताइये समाज का पूरा भला करेंगे और फिर आप इनके चापलूसी भरी बातों में आकर इनको वोट देकर भेज देंगे और फिर वही होगा जो पहले से होता आया है और यही पिछले ७५ सालों में हुआ है आपके साथ सिर्फ और सिर्फ छलावा और आगे भी होता रहेगा बेह्तर है जितना जल्दी संभलेंगे उतना जल्दी समाज का भला हो पायेगा।
धन्यवाद!
शशि धर कुमार
नोट: सर्वाधिकार सुरक्षित।
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