सामाजिक चेतना और इसमें शिक्षा का महत्त्व
हम लोग समाज का अर्थ समझते हैं – नारी और पुरुषों का समूह। समाज का वास्तविक अर्थ यह नहीं है। इसका सही अर्थ है- एक साथ मिलकर चलना। कभी-कभार हम बस, ट्रेन और ट्राम में एक साथ यात्रा करते हैं, पर ऐसी गति को समाज नहीं कह सकते हैं। जब लोग सामूहिक आदर्श से प्रभावित होकर उस आदर्श की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ते हैं, तो वही समाज कहलाता है। सामाजिक प्रगति का अर्थ होता है, एक साथ चलते हुए आपसी एकता को मजबूत बनाना। सामाजिक जागरूकता कैसे पैदा की जा सकती है? सामाजिक चेतना जब एक विशेष आदर्श से प्रभावित होती है और लोगों में उस आदर्श के कारण एक नवजागरण पैदा होता है, तभी सामाजिक जागरूकता संभव है। यह बात कई तत्वों पर निर्भर करती है। सबसे महत्वपूर्ण तत्व है, एक महान व्यक्तित्व का नेतृत्व। इसके लिए जरूरत है एक महान व आदर्शवान व्यक्तित्व की। जब तक इसकी कमी रहेगी, तब तक सुंदर और मजबूत समाज का निर्माण नहीं हो सकता, सामाजिक परिवर्तन की बात तो दूर ही रही।
समाज को सही पथ पर आगे बढ़ाने के लिए दो बातों का होना अत्यंत जरूरी है- एक महान आदर्श और एक महान व्यक्तित्व। सामाजिक चेतना का बीज एक साथ चलने और चिंतन करने में है। जहां ऐसे मंत्र नहीं हैं, वहां कोई आदर्श नहीं है और जहां कोई आदर्श नहीं है, वहां जीवन लक्ष्यविहीन है। मनुष्य की अभिव्यक्तियां और चलने की राह भी अनेक है। कुल मिलाकर, मनुष्य की विभिन्न अभिव्यक्तियां ही संस्कृति है। एक समूह के व्यक्ति के साथ दूसरे समूह के व्यक्ति की अभिव्यक्ति के तरीके में भिन्नता हो सकती है। जैसे एक समूह के व्यक्ति अपने हाथों से खाते हैं, तो दूसरे समूह के व्यक्ति चम्मच से खाते हैं, किंतु सबकी संस्कृति एक ही है। इसलिए मानव समाज की संस्कृति एक और अविभाज्य है। बौद्धिक विकास के साथ मनुष्य की अभिव्यक्तियों में वृद्धि की संभावना है।
समाज के आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक व राजनीतिक कलेवर होते हैं। इस कारण उनमें अनेक विसंगतियां भी दृष्टिगत होती हैं। विसंगतिया पैदा करने वाले तत्व सदैव यही प्रयास करते हैं कि उन्हें कायम रखा जाए, लेकिन शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जो सामाजिक विसंगतियों व समस्याओं को दूर कर सकता है। साथ ही मनुष्य में सामाजिक चेतना जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है।
सामाजिक विसंगतियों एवं उनके कारणों को दूर करने में शिक्षा की भूमिका कि वजह से समाज में कला, संस्कृति व साहित्य के उत्थान के अवसर तलाशे जा सकते हैं। शिक्षित समाज से ही प्रशासनिक, राजनैतिक व आर्थिक स्थित मजबूत होती है।
यदि व्यक्ति अपने इन्द्रियों पर नियंत्रण कर ले तो सामाजिक विसंगतियां स्वत: ही दूर हो जाएंगी। वास्तव में विसंगतियों की जननी मनुष्य की कामनाएं होती है। ऐसे में शिक्षा के प्रकाश से ऐसी कामनाओं पर विराम लगता है और व्यक्ति समाज व देश हित में सोचता है, इसलिए व्यक्ति के निर्माण में शिक्षा की अहम भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता।
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