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सामाजिक उत्तरदायित्व से उदासीनता

सामाजिक उत्तरदायित्व उदासीनता की वजह समाज में पिछड़ापनसामाजिक उत्तरदायित्व उदासीनता की वजह समाज में पिछड़ापन – हमारे समाज की सबसे बड़ी समस्या है कि पढ़े लिखे लोगो का समाज के प्रति उदासीनता। जिसकी वजह से ग्रुप में या मीटिंग में वे नही होते है तो ऐसा लगता है पता नही कब समाज इस बात से निपट पायेगा।

 

अगर कुछ आगे आते भी है तो कुछ समय के बाद उन्हें लगने लगता है हमारा समाज इतना पिछड़ा है कि इसको समझाने का मतलब है कुल्हाड़ी के ऊपर पैर रखना या पेड़ से खुद ही सिर टकराना। लेकिन मैं दोनों तरह के व्यक्तियों से यह कहना चाहता हूँ कि आप खुले दिमाग से सोचना शुरू कीजिए कि अगर हमारा समाज इतना परिपक्व होता तो क्या हम यह बोलते रहते है शायद नही। हमारे समाज मे हर कोई अगर इतना ही पढ़ा लिखा होता तो क्या हम इस तरह सबको पढ़ना चाहिए शिक्षा जरूरी है कहने की आवश्यकता होती शायद नही। तो सोचने वाली बात है कि हमे एक दूसरे की जरूरत है। पढ़े लिखे लोगो को अशिक्षित लोगो की जरूरत है ताकि आप यह पुनीत कार्य मे हिस्सा बन सके। और अशिक्षित लोगो को पढ़े लिखे लोगो की इसीलिए जरूरत है ताकि आप ज्यादा ठगे ना जाये और सही तरीके की शिक्षा ग्रहण कर जल्दी से जल्दी अपने समाज को आगे ले जाने में सहायक सिद्ध हो। क्योंकि जिसने पहले पढ़ाई की है वह ज्यादा ठोकर खाया है तो स्वाभाविक है आज पढ़ने वाले लोगो को उससे सहायता लेनी चाहिए।

 

हम पिछड़े क्यों है क्योंकि हमारी मानसिकता पिछड़ी हुई है उसे सुधारने की आवश्यकता है हमे बिना यह सोचे आगे बढ़ना है कि हमारी जिम्मेदारी समाज के प्रति क्या है। क्या हमारे समाज के लोग किसी भी तरह की स्वेक्षिक मदद खुद करने आगे बढ़ते है शायद नही? हमारी समाज के प्रति जिम्मेदारी क्या बनती है यह जानने की आवश्यकता है ना कि किसी के ऊपर दोषारोपण से। हर किसी का अपना योगदान होना चाहिए। वह ज्यादा महत्वपूर्ण है। जिंदगी तो जंगली जानवर भी जी लेते है और परिवार भी हमसे बेहतर संवेदना के साथ जीते है। हम यह नही कह रहे है कि हम जानवर से भी बदतर है लेकिन कमतर भी नही है। क्षमा चाहूँगा किसी को बुरा लगा हो तो। हमारी समस्या शुरू होती है सामने वाला कहाँ पहुँचा मैं नही पहुँचा। बजाय इसके यह देखने की हम समाज को क्या दे पा रहे है यह सोचने के, लोग सोचते है हमारे बैंक में कितना है।

 

समाज एक एक कर मिलने से बनता है और समाज तभी सुदृढ़ और सुंदर होता है जब सभी आपस मे मिलकर रहे एक दूसरे का हाथ पकड़कर आगे बढ़े बिना किसी भेदभाव के। सोचना दूसरे को नही होगा आपको खुद सोचना होगा कि आप समाज को क्या दे रहे है। यह महत्वपूर्ण होना चाहिए। सामाजिक कार्य करने के लिए जरूरी नही आप सभी से मिले तभी होगा। सामाजिक कार्य का एक ही मतलब होता है कि आप कुछ भी करे अगर उसका एक हिस्सा सामाजिक हितों की रक्षा को जा रहा है तो वही सामाजिक कार्य है।

 

सोचिये, आगे बढ़िए, लोगो से मिलिए और समाजिक हितों को लेकर काम करते रहिए। वही सच्ची सामाजिक कार्य होगा।

 

शशिधर कुमार
नोट: आपका सुझाव आमंत्रित है।

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महिला सशक्तिकरण और उसके उपाय

महिला सशक्तिकरण और उसके उपाय

महिला सशक्तिकरण और उसके उपाय

१. ‘महिला सशक्तिकरण‘ के बारे में जानने से पहले हमें ये समझ लेना चाहिये कि हम ‘सशक्तिकरण’ से क्या समझते है। ‘सशक्तिकरण’ से तात्पर्य किसी व्यक्ति की उस क्षमता से है जिससे उसमें ये योग्यता आ जाती है जिसमें वो अपने जीवन से जुड़े सभी निर्णय स्वयं ले सके। महिला सशक्तिकरण में भी हम उसी क्षमता की बात कर रहे है जहाँ महिलाएँ परिवार और समाज के सभी बंधनों से मुक्त होकर अपने निर्णयों की निर्माता खुद हो।

 

२. अपनी निजी स्वतंत्रता और स्वयं के फैसले लेने के लिये महिलाओं को अधिकार देना ही महिला सशक्तिकरण है। परिवार और समाज की हदों को पीछे छोड़ने के द्वारा फैसले, अधिकार, विचार, दिमाग आदि सभी पहलुओं से महिलाओं को अधिकार देना उन्हें स्वतंत्र बनाने के लिये है। समाज में सभी क्षेत्रों में पुरुष और महिला दोनों को लिये बराबरी में लाना होगा । देश, समाज और परिवार के उज्जवल भविष्य के लिये महिला सशक्तिकरण बेहद जरुरी है। महिलाओं को स्वच्छ और उपयुक्त पर्यावरण की जरुरत है जिससे कि वो हर क्षेत्र में अपना खुद का फैसला ले सकें चाहे वो स्वयं देश, परिवार या समाज किसी के लिये भी हो। देश को पूरी तरह से विकसित बनाने तथा विकास के लक्ष्य को पाने के लिये एक जरुरी हथियार के रुप में हैें।

 

३. जैसा कि हम सभी जानते है कि भारत एक पुरुषप्रधान समाज है जहाँ पुरुष का हर क्षेत्र में दखल है और महिलाएँ सिर्फ घर-परिवार की जिम्मेदारी उठाती है साथ ही उनपर कई पाबंदीयाँ भी होती है। भारत की लगभग 50 प्रतिशत आबादी केवल महिलाओं की है मतलब, पूरे देश के विकास के लिये इस आधी आबाधी की जरुरत है जो कि अभी भी सशक्त नहीं है और कई सामाजिक प्रतिबंधों से बंधी हुई है। ऐसी स्थिति में हम नहीं कह सकते कि भविष्य में बिना हमारी आधी आबादी को मजबूत किये हमारा देश विकसित हो पायेगा। अगर हमें अपने देश को विकसित बनाना है तो ये जरुरी है कि सरकार, पुरुष और खुद महिलाओं द्वारा महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया जाये।

 

४. महिलाओं की समस्याओं का उचित समाधान करने के लिये महिला आरक्षण बिल-108वाँ संविधान संशोधन का पास होना बहुत जरुरी है ये संसद में महिलाओं की 33% हिस्सेदारी को सुनिश्चित करता है। दूसरे क्षेत्रों में भी महिलाओं को सक्रिय रुप से भागीदार बनाने के लिये कुछ प्रतिशत सीटों को आरक्षित किया गया है। सरकार को महिलाओं के वास्तविक विकास के लिये पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में जाना होगा और वहाँ की महिलाओं को सरकार की तरफ से मिलनेवाली सुविधाओं और उनके अधिकारों से अवगत कराना होगा जिससे उनका भविष्य बेहतर हो सके। महिला सशक्तिकरण के सपने को सच करने के लिये लड़िकयों के महत्व और उनकी शिक्षा को प्रचारित करने की जरुरत है।

 

५. महिला सशक्तिकरण में ये ताकत है कि वो समाज और देश में बहुत कुछ बदल सकें। वो समाज में किसी समस्या को पुरुषों से बेहतर ढ़ंग से निपट सकती है। वो देश और परिवार के लिये अधिक जनसंख्या के नुकसान को अच्छी तरह से समझ सकती है। अच्छे पारिवारिक योजना से वो देश और परिवार की आर्थिक स्थिति का प्रबंधन करने में पूरी तरह से सक्षम है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाएँ किसी भी प्रभावकारी हिंसा को संभालने में सक्षम है चाहे वो पारिवारिक हो या सामाजिक।

 

६. महिला सशक्तिकरण की जरुरत इसलिये पड़ी क्योंकि प्राचीन समय से भारत में लैंगिक असमानता थी और पुरुषप्रधान समाज था। महिलाओं को उनके अपने परिवार और समाज द्वार कई कारणों से दबाया गया तथा उनके साथ कई प्रकार की हिंसा हुई और परिवार और समाज में भेदभाव भी किया गया ऐसा केवल भारत में ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी दिखाई पड़ता है। महिलाओं के लिये प्राचीन काल से समाज में चले आ रहे गलत और पुराने चलन को नये रिती-रिवाजों और परंपरा में ढ़ाल दिया गया था। भारतीय समाज में महिलाओं को सम्मान देने के लिये माँ, बहन, पुत्री, पत्नी के रुप में महिला देवियो को पूजने की परंपरा है लेकिन इसका ये कतई मतलब नहीं कि केवल महिलाओं को पूजने भर से देश के विकास की जरुरत पूरी हो जायेगी। आज जरुरत है कि देश की आधी आबादी यानि महिलाओं का हर क्षेत्र में सशक्तिकरण किया जाए जो देश के विकास का आधार बनेंगी।

 

७. निष्कर्ष – भारतीय समाज में सच में महिला सशक्तिकरण लाने के लिये महिलाओं के खिलाफ बुरी प्रथाओं के मुख्य कारणों को समझना और उन्हें हटाना होगा जो कि समाज की पितृसत्तामक और पुरुष प्रभाव युक्त व्यवस्था है। जरुरत है कि हम महिलाओं के खिलाफ पुरानी सोच को बदले और संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों में भी बदलाव लाये।

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महिला सशक्तिकरण से धानुक समाज में क्या तात्पर्य है

महिला सशक्तिकरण से धानुक समाज में क्या तात्पर्य है

महिला सशक्तिकरण से धानुक समाज में क्या तात्पर्य है

महिला सशक्तिकरण से धानुक समाज में क्या तात्पर्य है? और इससे महिला सशक्तिकरण का मतलब है वह सब अधिकार सामान रूप से महिलाओं के लिए भी है जो समाज में पुरुषों को मिला है। अब सवाल उठता है इसका मतलब यह हुआ की समाज में पुरुष जो कर सकते है उसका सामान अधिकारी महिला को भी माना गया है संविधान में। यहाँ तक की पुराणों और ग्रंथो में भी महिलाओं का स्थान ऊपर है पुरुषों से।

 

लेकिन समाज की क्या परिभाषा है महिलाओं के बारे में यह जानना आवश्यक है और उसको समझना जरूरी है। हमारे समाज या किसी भी समाज में भारत के सन्दर्भ में महिलाओं की स्थिति काफी दयनीय है जिसको आप कह सकते है वे सिर्फ घर सँभालने तक सिमित रह गयी है। ऐसा नहीं है घर संभालना आसान काम है इसको समझने के लिए मैं समाज के पुरुषों से आग्रह करता हूँ की एक दिन अपने घर की महिलाओं को छुट्टी देकर देखे फिर आपको पता चलेगा कितना मेहनत का काम है। यह उतना ही दुरूह काम है जितना एक मर्द द्वारा बच्चे पैदा करने का समान है।

 

लेकिन हमारे समाज के पुरुषों की यह सोच महिलाये सिर्फ घरेलु कामों के लिए है तो यह सोच को बदलने की आवश्यकता है जिसके बिना हमारा समाज आगे नहीं बढ़ सकता है। समाज में स्त्री और पुरुष गाड़ी के दो पहियों की तरह है अगर एक भी इधर से उधर या छोटा बड़ा हुआ गाड़ी डगमगा जायेगी। स्त्री और पुरुष दोनों नदी के दोनों छोड़ो की तरह है जहाँ एक बिना नदी का अस्तित्व खतरे में है। उसी तरह कही ऐसा ना हो हमारा समाज खतरे में ना पड़ जाए। तो वास्तव में जागना होगा हमें और यही सही समय है।

 

कैसे महिला सशक्तिकरण हो यह बड़ा सवाल है। जिसके लिए मैं अपनी तरफ से निम्नलिखित बातो पर अपने अपने तौर पर व्यक्तिगत जीवन में छोटी छोटी चीजो के ऊपर काम करे तो एक बेहतर समाज बनकर उभर सकते है:
1) अपने घर में महिलाओं का सम्मान करना सीखें चाहे वह छोटी हो या बड़ी।
2) अपने घर की महिलाओं को किसी भी बड़े निर्णय में उनकी राय जरूर मांगे। जैसे हम किसी भी बड़े पूजा पर अपनी पत्नी को अपनी दाहिनी तरफ बिठाते है। यह बड़ी बात है आपके दाहिनी ओर आपकी पत्नी बैठती है। इसको यही तक सिमित ना रखे।
3) अपने बच्चियों के शिक्षा पर ध्यान दे चाहे बेटा हो या बेटी दोनों को समान शिक्षा का अधिकार दे।
4) आस पास की महिलाओं चाहे वे आपके घर आते हो या नहीं उनको सम्मान दे अगर आप ऐसा करेंगे तो आपके बच्चे भी वही सीखेंगे।
5) अपने समाज में सम्मानित महिलाओं का सम्मान करने से ना चुके चाहे कोई भी मौका हो। जब हमारी बेटी हमसे बड़ा काम करती है तो ढिंढोरा पीटने से बाज़ नहीं आते है तो अगर हमारी पत्नी कुछ बड़ा काम करे तो शर्म कैसी ढिंढोरा पीटने में।
6) अपनी बेटियों को बताये जितना हक़ आपके ऊपर आपके बेटे का है उतना ही हक़ आपकी बेटी का भी। बेटी जब बड़ी होने लगती है तो यह जताना शुरू कर देते है कि तू तो बेटी है शादी होते ही हमें छोड़ चली जायेगी। ऐसा कहना बंद करे इससे वह मानसिक संतप्त में रहती है।
7) बेटियां जो भी करना चाहे उसे करने की आज़ादी दे ना की बंधन में बांधे। अगर उसे बांधना ही है तो अपने संस्कारो की पोटली से बांधे। आप देखेंगे कि वह आपके बेटे से ज्यादा आपके संस्कारो को आगे तक ले जाने में सक्षम है।
8) बेटियों को सर का ताज समझे ना की बोझ, आप जितना जल्दी यह समझेंगे उतनी जल्दी आपको पता चलेगा कि बेटी आपके सब दुखो का निवारण करने में सक्षम है।
9) बेटियों को अपने भविष्य के बारे में सोचने का पूरा हक दे। उन्हें सलाह अवश्य दे, अवश्य अच्छा बुरा बताये लेकिन एक दायरे तक। मैं तो कहूंगा कि यह हमारे बिहारियों में कूट कूट कर भरी हुई है कि हम अपने बच्चों को हम जो चाहते है वही करवाना चाहते है वह नहीं होना चाहिए उन्हें भी अपने बारे में सोचने का मौका दे।
10) हमारी संस्कृति है कि 16 के होते ही बेटी की शादियों की चिंता करने लग जाते है। चिंता करना लाजिमी है करे लेकिन उन्हें कुछ करने का मौका तो दे पहले।

 

यह अपने अनुभव के आधार पर जो सामाजिक परिदृश्य देखा है वही बयां किया गया है किन्ही को कुछ लग रहा हो की सुधार की आवश्यकता है तो मैं उनसे अवश्य अपेक्षा करूँगा।

धन्यवाद।

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