भारत रत्न भीमराव रामजी आंबेडकर (१४ अप्रैल, १८९१ – ६ दिसंबर, १९५६) बाबासाहब के नाम से लोकप्रिय, भारतीय विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाजसुधारक के नाम से मशहूर बाबासाहेब की जयंती की हार्दिक बधाई!
आशा करते है बाबा साहेब द्वारा कृत संविधान हम सबको एक निश्चित और सामान अधिकार दिलाने में अभी तक कामयाब रहा होगा। मैं यहाँ उन बातो को बताना नहीं चाहता हूँ की किनकी वजह से यह नहीं मिला और किनकी वजह से यह मिला। लेकिन संविधान ने हमे बहुत कुछ ऐसा दिया है जिनसे हम अपनी ज़िन्दगी कैसे बेहतर कर सके, हम अपने अधिकारो की रक्षा कैसे करे, हमारे कर्तव्य क्या क्या है इत्यादि जो बाबा साहेब ने 70 साल पहले सोचा आज भी वह उतना ही अक्षरश सत्य है जितना 40 साल या 70 साल पहले। तो आज हमे इस बात को जानने में ज्यादा विश्वास दिखाना चाहिए की एक व्यक्ति की वजह से एक आम आदमी को इतना अच्छा संविधान मिला है, यह उनकी दूरदर्शिता का कमाल है।
आपको ध्यान रखना है की कौन क्षद्म रूप से आपको बरगलाने की कोशिश में लगा हुआ है ऐसे लोगो को बेनकाब करने की जरुरत है। क्योंकि कोई भी क्षद्म रूप किसी भी समाज के लिए कही सही नहीं होता है।
बाबा साहेब के बारे में जो आज़ादी से लेकर आजतक चित्र प्रस्तुत किया गया उसमे सिर्फ एक संविधान निर्माता के रूप में प्रस्तुत किया गया, लेकिन अगर कोई उनके प्रोफाइल को चेक करेगा तो पता चलेगा जिस व्यक्ति को राष्ट्र निर्माता के रूप में पदस्थापित करना था वह एक संविधान निर्माता के रूप में या दलित राजनीतिज्ञ के रूप में रह गए।
पंडित जी ने जब अंतरिम सरकार बनाने के लिए 32 लोगो का चयन किया था तो उसमे अम्बेडकर साहेब नहीं थे लेकिन जैसे ही उस लिस्ट को लेकर गांधीजी के पास पहुंचे तो गांधीजी ने पूछा की अम्बेडकर का नाम क्यों नहीं है तो पंडित जी और पटेल जी बगले झाँकने लगे तो गांधीजी ने एक बात कही “नेहरु एक बात बताओ की अम्बेडकर से बढ़कर कोई आज की तारीख में कानून को जानता हो, तो बताओ”।
उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और दलितों के खिलाफ सामाजिक भेद भाव के विरुद्ध अभियान चलाया। श्रमिकों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन किया। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री एवं भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार थे। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स दोनों ही विश्वविद्यालयों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने विधि, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान के शोध कार्य में ख्याति प्राप्त की। जीवन के प्रारम्भिक करियर में वह अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे एवम वकालत की। बाद का जीवन राजनीतिक गतिविधियों में बीता। 1990 में, उन्हें भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से मरणोपरांत सम्मानित किया गया था।
शिक्षित बनो ! संगठित रहो! और संघर्ष करो!। यह सिर्फ एक नारा नहीं है अगर गौर करे तो यह एक ऐसी लाइन है जिसमे उपेक्षित समाज के जिंदगी को लिखा गया है लेकिन यहाँ ध्यान रखने वाली बात यह है की यह लाइन कही से से आगे पीछे ना होने पाए यह जैसे है वैसे ही अपनी जिंदगी में सार्थक करने का प्रयास करना चाहिए कहने का मतलब है की अगर पहली लाइन शिक्षित बनो लिखा है तो पहले शिक्षित बनिए दूसरी लाइन संगठित रहो है तो पहले आपको शिक्षित होना है फिर संगठित होना अगर शिक्षित होंगे तभी बिना किसी स्वार्थ के संगठित रह पायेंगे अगर शिक्षित ही नहीं बनेंगे तो संगठित होने का मतलब नहीं समझ पायेंगे। आखिर में तीसरी लाइन संघर्ष करो लिखा है तो पहले शिक्षित बनिए फिर संगठित रहिये फिर आप संघर्ष कर पाएंगे क्योंकी अगर आप शिक्षित नहीं होंगे तो संगठित नहीं हो पाएंगे और अगर बिना शिक्षित हुए संगठित होकर संघर्ष करेंगे तो आपको संघर्ष करने के बाद करना क्या है उसका मतलब नहीं समझ आएगा। तो लाइन में कही भी कोई बदलाव नहीं होना चाहिए अगर आप इसको उल्टा और अगर स्थान बदलने की कोशिश करेंगे तो भी उपेक्षित समाज का उत्थान संभव नहीं है जो लाइन है जैसे है वैसे ही अपने जीवन में ढालने का प्रयास करे तभी अगर आप उपेक्षित है या उस समाज से आता है तभी आप अपना या अपने समाज का भला कर पाएंगे।
शिक्षा ही एक मात्र उपाय है उत्थान का, उसके महत्त्व को समझिये और सबको समझाइए।
अंत में उनका एक वाक्य है जो सभी को पढ़ना चाहिए “मंदिर जाने से आपका कल्याण होगा ही, यह नही कहा जा सकता। लेकिन राजनीतिक अधिकारों का उपयोग जीवन में सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिए करना चाहिए।” – डॉ अम्बेडकर, 28 सितंबर 1932 वर्ली, मुंबई
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धन्यवाद
शशि धर कुमार
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